प्रयागराज तीर्थ अपने धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं के लिए जाना जाता है। इस शहर में ऐसे कई दर्शनीय स्थल है जिसकों आपको प्रयागराज की यात्रा में एक बार जरूर देखना चाहिए। चलिए आज हम इस लेख के जरिए प्रयागराज के 16 प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल के बारें में बात करेंगे –
आइए जानते है प्रयागराज के 16 दर्शनीय स्थल के बारें में एक-एक करके –
अमर चंद्रशेखर पार्क –

यह पार्क सिविल लाइंस क्षेत्र मे स्थित है। यहाँ पर स्वतंत्रता संग्राम के वीर सेनानी चंद्रशेखर आजाद अग्रेजों से संघर्ष मे घिरने पर खुद को गोली मार ली। और अंग्रेजों के हाथ जीते जी ना आने के वादे को पूरा किया था। यहाँ पर उसी वृक्ष के नीचे प्रतिमा लगी है। यह पार्क 133 एकड़ में फैला हुआ है। पहले इस पार्क का नाम कंपनी गार्डन था। परंतु आजादी के उपरांत इसका नाम चंद्रशेखर पार्क रख दिया। स्थानीय लोग यहाँ इसके शांति और प्राकृत सुंदरता के मध्य शाम को अक्सर वॉकिंग,रनिंग एवं व्यायाम करते दिखते है।
इलाहाबाद किला –

इलाहाबाद किला की तो इसे अकबर द्वारा बनवाया गया था। यह यहाँ बताए जाणे वाले प्रयागराज के 16 प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल में से एक है। हालांकि जब अकबर की मृत्यु हुई थी तब इसका सिर्फ चौथा हिस्सा ही बन पाया था। इस किले को बनने मे पूरे 45 साल 5 महीने 10 दिन लगा था। जिसमें कुल 20,000 श्रमिकों की मदद से 6 करोड़ 17 लाख 20 हजार 224 रुपये धनराशी का खर्च आया | जबकि पत्थर यहां से 18 किमी दूर भीटा से लाया गया था।
यह किला चार भागों मे विभाजित है। जिसमे पहला भाग बादशाह का आवास था। दूसरा और तीसरा हिस्सा अकबर के शाही हरम और नौकरों के रहने की व्यवस्था थी। और चौथा भाग में सैनिकों का स्थान सुनिश्चित था। पर्यटकों को अशोक स्तम्भ, सरस्वती कूप, जोधबाई का महल देख सकते है।
इसे मुग़लों के समय आर्म्ड फोर्स् के लिए प्रयोग किया जाता था। अंग्रेजों ने भी इसका इस्तेमाल आर्म्ड फोर्स के लिए ही किया था और आज भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। इसको महाकुंभ मे दर्शकों के लिए खोला जाता है। वैसे इसका चौथा हिस्सा हमेशा खुला जिसमे 44 देवताओ की मूर्ति है, जिसे पातालपुरी मंदिर कहा जाता है।
आनंद भवन –

7अगस्त 1899 को मोतीलाल नेहरू ने 20 हजार रुपये मे 19 बीघा का बंगला राजा जयकीशन दास से खरीदा। बाद मे इन्होंने एक नया बिल्डिंग बनवा के 1930 मे स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए दे दिया। 1970 मे इंदिरा गांधी ने आनंद भवन को सरकार को दे दिया तब से इसकी रख रखाव की जिम्मेदारी सरकार पर है। 1920 मे आल इंडिया खिलाफत स्वराज भवन मे ही बनी। तथा संविधान बनाने की आल पार्टी का सम्मेलन भी स्वराज भवन मे हुआ।
जबकि स्वराज भवन को काँग्रेस को देने के बाद इन्हे एक नई बिल्डिंग खरीदनी पड़ी। आनंद भवन की नींव 1926 मे रखी गई जो दो मंजिल इमारत है। इसमें चाचा नेहरू की पुरानी सभी चीज़े रखी गई है। वैसे इसको पंडित जी का गृह संग्रहालय कहा जा सकता है। इसमें तारामंडल भी है।
खुसरो बाग –

प्रयागराज के लूकरगंज में स्थित खुसरो बाग का किला जरूर घूमिए। आपको वहां मुगल वास्तुकला की एक अच्छी झलक देखने को मिलेगी। जिसमें बलुआ पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है। यहां पर शाह बेगम, खुसरो मिर्ज़ा तथा निथार बेगम को श्रद्धांजलि देते हुए कुछ मकबरे हैं।
यहां पर आपको अमरूद के बाग भी मिल जाएंगे जो की बहुत ही प्रसिद्ध है और इसको यहां से निर्यात भी किया जाता है।
त्रिवेणी संगम –

प्रयागराज के 16 प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल में महत्वपूर्ण गंगा यमुना एवं सरस्वती नदियों का मिलन त्रिवेणी संगम के नाम से जाना जाता है। हालांकि यहाँ दो नदियों का मिलन होता है। कुछ लोगों का ऐसा मानना है की सरस्वती नदी का यहाँ कभी अस्तित्व रहा ही नहीं। क्योंकि यहाँ ज्ञान का प्रवाह प्राचीन समय काफी था जिससे सरस्वती नदी को प्रतीकात्मक रूप से मान लिया जाता है। लेकीन कई ऐसे साक्ष्य ऐसे उपलब्ध है जिससे इस नदी का भूत मे अस्तित्व रहा होगा।
ऐसा माना जाता है की संगम स्नान करने से आपके सारे पाप धूल जाते है। जिससे देश के कोने-कोने और विदेशों से भी श्रद्धालु एवं पर्यटक काफी मात्रा में आते है। यहाँ प्रत्येक वर्ष माघ मेला, तीसरे एवं छठे वर्ष अर्धकुंभ जबकि हर बारहवें वर्षों में महाकुंभ लगता है। यहाँ मौनी आमवस्या के दिन इतने लोग आते है की यह एक दिन के लिए दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला शहर बन जाता है।
आलोपी बाग मंदिर –

यह मंदिर एक अनोखी मंदिर है। क्योंकि इस मंदिर में किसी की भी मूर्ति नहीं है। इसमें एक पालना जैसा डोली या गाड़ी की पूजा की जाती है। इसमें एक किवंदती यह प्रसिद्ध है की मध्यकालीन समय में यहाँ काफी जंगल हुआ करता था। यहाँ चोर एवं डाकू होते थे जो यहाँ से समान लूटते थे। इनका सबसे आसान निशाना लौटने वाली बारात हुआ करती थी। एक बार लौटी हुई बारात लूट कर सभी को मार दिया। और इसके बाद डोली की ओर बढ़े तो दुल्हन गायब हो चुकी थी। तभी से यह मिथक एवं किंवदती है।
जब की दूसरी आस्था हिन्दू धर्म की है की जब सती की मृत्यु हो गई थी तो दुखी शंकर जी सती को लेकर आकाश मे घूम रहे थे। इनकों पीड़ा से राहत देने के लिए विष्णु भगवान ने अपना सुदर्शन चक्र सती पर चल दिया था। जिससे सती के शरीर का टुकड़ा पूरे भारत में गिरा। और अंतिम भाग यहाँ गिरा। यहाँ से साथी का शरीर अलोप(गायब) हो गया जिसकी वजह से इसे आलोपी शंकर मंदिर कहा जाता है।
इलाहाबाद संग्रहालय –

इलाहाबाद संग्रहालय जिसके द्वार पर हमारे भारत के वीर सपूत आजाद की पिस्टल रखी गई है जिससे उन्होंने अपने प्राण लिए थे। इसी के निकट आपको प्रयाग संगीत समिति भी स्थित है। मदन मोहन मालवीय स्टेडियम भी निकट में स्थित है।
आप यहाँ एक पुस्तकालय भी स्थत है जिसे उत्तर प्रदेश का सबसे पुराना पुस्तकालय कहा जाता है। जिसमें लगभग 1,25,000 पुस्तकें संग्रहीत है। यहाँ आपको दुर्लभ पुस्तकें भी उपलब्ध हो सकती है। इसे 1864 ई. में स्थापित किया गया था। इस संग्रहालय में कुल 18 गैलरी है। इसके खुलने का समय सुबह 10-5 बजे शाम तक है। राज्यपाल यहाँ का पदेन अध्यक्ष होता है।
श्री मनकामेश्वर –

मनकामेश्वर मंदिर, के बारें मे ऐसा माना जाता है भगवान शंकर ने अपनी शिवलिंग स्वयं स्थापित की थी। यहाँ ऐसी मान्यता है की दर्शन करने से आपके सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। यहाँ ‘रण मुक्तस्वर शिवलिंग’ है “ऋणों से मुक्ति दिलानेवाला भगवान” कहा जाता है।
यह मंदिर यमुना नदी के किनारे सरस्वती घाट से पूर्व स्थित है।
जवाहर प्लैनेटोरियम –

इसे इसरो के द्वारा सन् 1979 ई. मे स्थापित किया गया था। इसमें खगोल एवं वैज्ञानिक रुचि वालों के लिए आकर्षक स्थल है। यहाँ आपको खगोलीय कार्यक्रम दिखाए जाते है। ‘जवाहर मेमोरियल लेक्चर’ कार्यक्रम भी आयोजित किया जाता है।
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी –

प्रयागराज के 16 प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल में यह शिक्षा पुराना संस्थान है। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी को पूरब का ऑक्सफोर्ड कहा जाता है। इसकी स्थापना 23 सितंबर 1887 ई. की गई थी। प्रारंभ में इसे मुइर सेंट्रल कॉलेज के नाम से जाना जाता था। सन् 2005 में इसे केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिला। इस कॉलेज ने भारत के कई प्रधानमंत्री, यूपी के मुख्यमंत्री के साथ-साथ कई प्रशासकों को दिए है। इसका विज़न ‘जितनी शाखाएं उतने वृक्ष’ के साथ निरंतर गतिमान है। यद्यपि की कुछ सालों मे इसकी शाख थोड़ी नीची गई है। परंतु अपने गरिमा को प्राप्त करने प्रयासरत है। इसमे कला, विज्ञान, लॉ, मैनेजमेंट आदि जैसे विभागों मे शिक्षा दी जाती है।
आल सैन्ट कैथ्रेडल –

उत्तर प्रदेश के सबसे खूबसूरत चर्च की बात की जाती है तो उसमें आल सैन्ट कैथ्रेडल पर्यटकों में काफी लोकप्रिय है | इसको ‘चर्च आफ स्टोन’ से भी जाना जाता है। इसका निर्माण सन् 1971 में मुईर एलिजाबेथ हंटली वेमिस ने करवाया था। इस चर्च को देखकर ऐसा लगता है जैसे रोमन साम्राज्य के किसी राजगृह को देख रहो हो।
श्री नागवासुकी मंदिर –

श्री नागवासुकी मंदिर प्रयागराज में दारागंज के उत्तरी छोर पर स्थित है। इसका वर्णन पद्म पुराण और श्रीमद्भागवात में उद्धरण मिलता है। ऐसा माना जाता है की समुन्द्र मंथन के बाद नगवासुकी को काफी जलन हुई। उनको मदराचल पर्वत पर आराम करने के बाद भी जलन खत्म नहीं हुई। उन्होंने प्रयागराज में इसी जगह आराम किया था।
ऐसा माना जाता है की प्रयागराज में तीर्थयात्रा के दौरान अगर यहाँ दर्शन ना किया जाय तो यात्रा अधूरी मानी जाती है। सावन के महीने में लोग यहाँ काफी मात्रा में आते है।
इतिहास में ऐसा कहा जाता है की मंदिर का जीर्णोद्धार नागपुर के राजा श्री धर ने करवाया था। एक बात इस मंदिर के बारे में ऐसा कहा जाता है की औरंगजेब यह मंदिर तोड़ने आया था। जिस वक्त वह चोट करने वाला था उस समय मंदिर से दूध की धारा निकली और वह बेहोश हो गया।
आधुनिक समय में 2001 में मुरली मनोहर जोशी ने इस मदिर की मरम्मत करवाया था।
श्री बड़े हनुमान मंदिर –

हनुमान जी का यह मंदिर संगम के किनारे किले के पास स्थित है। हनुमान जी कई एकमात्र लेटी हुए प्रतिमा है। इन्हे लेटे हुए, बँधवा वाले, बड़े हनुमान एवं किले वाले हनुमान जी की मंदिर से जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है लंका विजय के पश्चात हनुमान जी ने यहाँ पर आराम किया था। यहाँ हनुमान जी की जमीन से नीचे 20 फुट की मूर्ति स्थित है। ऐसा माना जाता है की हर साल गंगा माँ हनुमान जी की प्रतिमा को स्नान करवाने आती है।
इतिहास की बात की जाय अकबर मगध, अवध और बंगाल पर अधिकार के लिए प्रयागराज को चुना था। उसने मूर्ति को हटवाने की भी कोशिश परंतु मूर्ति ऊपर आने के बजाय नीचे धंस गई। इसके बाद उसने किले के दीवार को मंदिर के बाहर से बनवाया।
इस मंदिर में मंगलवार और शनिवार को के दिन काफी मात्रा में श्रद्धालु आते है।
भारद्वाज पार्क –

भारद्वाज पार्क संगम से 5 किलोमीटर दूर बालसन चौराहे पर स्थित है। यहाँ पर ऋषि भारद्वाज की एक बड़ी 32 फीट प्रतिमा स्थापित है। इस मूर्ति की स्थापना 2019 में की गई जिसका उद्घाटन तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने किया था। महर्षि भारद्वाज को प्रयागराज का प्रथम जाना जाना वाला नागरिक माना जाता है। इन्हे कुलपति की भी उपाधि भी सर्वप्रथम मिला था। उस समय जिसके शिष्यों की संख्या 10,000 हो जाती थी उसको इसकी उपाधि मिली थी।
ऐसा माना जाता है की प्रयागराज संगम की लुप्त नदी सरस्वती यहाँ से ही होकर प्रवाहित होती थी। वनवास के समय श्रीराम, माँ सीता और लक्ष्मण इस आश्रम से होकर गुजरे थे। जहां से उन्हे चित्रकूट जाने का रास्ते के बारे में भी जानकारी मिली थी।
प्रयाग को भारद्वाज ने ही बसाया था। चरक संहिता में कहा गया है कि भरद्वाज ने इन्द्र से आयुर्वेद का ज्ञान प्राप्त किया। महर्षि भरद्वाज ने कई ग्रंथ लिखे हैं, जिनमें व्याकरण, आयुर्वेद, धनुर्वेद, राजनीति शास्त्र, अर्थशास्त्र, पुराण, शिक्षा आदि शामिल हैं। वायुपुराण के अनुसार, उन्होंने अपने शिष्यों को आयुर्वेद संहिता का आठ भाग सिखाया था।
श्री अक्षयवट मंदिर पातालपुरी –

अक्षयवट वृक्ष के बारे में बहुत सी कहानियाँ प्रसिद्ध है। ऐसा माना जाता है कई वृक्ष को अमरता का वरदान मिला हुआ है और जब तक धरती रहेगी तब तक इस वृक्ष का भी अस्तित्व रहेगा।
पहले कहानी की बात करे तो अक्षयवट के नीचे ही ब्रह्मा जी ने यज्ञ किया था। साथ ही ऐसा माना जाता है की इसको भगवान शिव और माता पार्वती ने लगाया था। यहाँ त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश उपस्थित रहते है। यहाँ गिरने वाली पत्तियों को लोग प्रसाद के रूप में ले जाते है। भगवान राम जब वनवास के लिए निकले थे तो यहां पर एक दिन विश्राम किया था।
एक बात तो ये भी कही जाती है की माता सीता ने इन्हे वरदान दिया था। उसकी कहानी ये बताई जाती है की राजा दशरथ मरने के बाद श्राद्ध के लिए माता सीता के सामने प्रकट होकर उनसे भूख लगने की बात बताई। उस समय माता सीता ने इस वटवृक्ष के नीचे कुछ ना सूझने पर बालू से पिंडदान किया था। लेकिन नदी ने लालच में दोबारा दक्षिणा पाने के लिए झूठ बोल दिया लेकिन वृक्ष ने सच कहा जिससे प्रसन्न होकर माता सीता ने वृक्ष को वरदान दिया था।
यहाँ पर पातालपुरी में 44 भगवानों की मूर्तियाँ स्थित है। इसका निर्माण अकबर ने करवाया था। इसको पहले इसका गेट बंद रखा जाता था लेकिन 2019 में पीएम मोदी की पहल पर इसे लोगों के लिए खोल दिया गया। इसका पहला उल्लेख रामायण में भी देखने को मिलता है।
श्री आदि शंकर विमान मंडपम मंदिर –

श्री आदि शंकर विमान मंडपम संगम के पास 130 फीट ऊंची मंदिर स्थित है। यह मंदिर द्रविड़ शैली में निर्मित है। इसका निर्माण कांची काम कोटी के शंकराचार्य चंद्रशेखरेन्द्र सरस्वती के प्रयत्न से बनाया गया। यह मंदिर 16 खंभों पर निर्मित है तथा इसमे 108 शिवलिंग स्थापित है।
यह तीन मंजिला मंदिर बनाने में 16 साल लगे थे। इसमें कामाक्षी देवी की प्रतिमा के साथ भगवान बाला जी एवं जगतगुरु शंकराचार्य की मूर्ति भी स्थित है।
निष्कर्ष –
इस प्रकार आपने देखा की जो प्रयागराज के 16 प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल के बारें में हमने जानकारी दी, वो पौराणिक अस्तित्व के साथ भारत के इतिहास में भी अपना स्थान बनाए हुए है। प्रयागराज तीर्थ ना सिर्फ महाकुंभ में लगने वाले मेंले के लिए प्रसिद्ध है बल्कि यहाँ और भी ऐसी चीज़े है जिसकों इक्स्प्लोर किया जाता है। तो आप जब भी यह आइए एक बार सभी जगह को जरूर