प्रयागराज जिला जो अपने धार्मिक और सांस्कृतिक स्थानों के लिए काफी प्रसिद्ध है। यहां विभिन्न प्रकार के ऐसे स्थान स्थित है, जो आपको धार्मिक यात्रा के साथ-साथ अपने रहस्यों से रोमांचित कर देते हैं। आज आपको उन्ही में से एक मंदिर जो की प्रयागराज के संगम के निकट स्थित है, की बात करेंगे। इस मंदिर को आलोपीबाग मंदिर प्रयागराज के नाम से जाना जाता है। आपने बहुत से ऐसे मंदिर के बारे में सुना होगा जिसमें आपको किसी विशेष देवी-देवता की मूर्ति स्थापित होती होगी, परंतु प्रयागराज में निर्मित मंदिरों में मात्र यह एक मंदिर है, जहां किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है।
आलोपीबाग मंदिर का इतिहास –
अगर इसके निर्माण कार्य की बात करे तो मराठा साम्राज्य के सेनापति श्रीनाथ महादाजी शिंदे ने 1772 ई. में किया था। उन्होंने इसके साथ ही संगम तट का भी विकास किया था। इसके उपरांत मंदिर का जीर्णोद्धार के साथ ही संगम तट क मरम्मत का कार्य बैजाबाई सिंधियां ने किया था।
आलोपीबाग मंदिर प्रयागराज में होती है पालने की पूजा –
बात करें इस मंदिर की इसमें एक पालने की पूजा होती है। यहां पर चांदी का एक चबूतरा है जिसके ऊपर पालना ही जिसकी पूजा होती है। पालना लकड़ी का है परंतु इसको चांदी से मढ़ा गया है। इसको लोग देवी का स्वरूप मानकर पूजा-अर्चना करते हैं। लोग माँ के साज सज्जा के समान कों अर्पित करते हैं। साथ ही उस कुंड कों चांदी के ढक्कन से ढक दिया गया है। साथ ही रक्षा-सूत्र बांधकर लोग अपनी मनोकामना मांगते है।

मंदिर के प्रांगड़ में ही सती के नौ रूपों के स्थापित किया गया है। साथ ही परिसर शिव जी, नंदी और हनुमान जी की भी मूर्ति स्थापित है।
प्रमुख अनुष्ठान एवं त्योहार –
नवरात्रि के समय यहां पर भारी मात्रा में श्रद्धालु आकार अपने मनोकामना माँ से पूर्ण होने की प्रार्थना करते हैं। इसके अलावा शिवरात्रि, अक्षय तृतीया, पूर्णिमा और दीवाली का त्योहार यहाँ बड़े-धूमधाम से मनाया जाता है। इसके अलावा यहां पर विभिन्न प्रकार के अनुष्ठान होते रहते है जिसमें आरती के साथ दीपक जलाना भजन गाए जाते हैं।
आलोपीबाग मंदिर के बारे में प्रचलित मान्यता एवं किवदंती –
अनादि काल से एक मान्यता चली आ रही है की महाराज दक्ष ने सती माता और भगवान शिव को अपने यहां यज्ञ में नहीं बुलाया था। लेकिन चुकी सती माता दक्ष की पत्नी थी तो वो फिर भी उस यज्ञ में जाती है। जहां पर उनका तथा साथ में शिव जी का उपहास बनाया जाता है। जिससे आहत होकर यज्ञ कुंड में ही सती ने अपना आत्मदाह कर लिया था।
जिससे शिव भगवान क्रोधित हो गए। तथा सती के मृत शरीर को लेकर ब्रह्मांड में चक्कर लगाने लगे। जिससे इस पीड़ा से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु नें सुदर्शन चक्र से सती के मृत शरीर पर चल दिया था। जो की 51 टुकड़ों में विभाजित होकर विभिन्न स्थानों पर गिरा था। ऐसा माना जाता है की सती के दाहिने हाथ का पंजा यहां कुंड में गिरकर के गायब हो गया था। जिससे इस जगह कों आलोपी बाग के नाम से जाना जाता है।
वहीं दूसरी किंवदंती के अनुसार यहां पर पुरातन समय में जंगल था। उस समय बारात वापसी के समय डकैती जैसे कुकृत्यों कों अंजाम दिया जाता था। वापसी के समय बरातियों के पास विभिन्न प्रकार के आभूषणों सहित कई समान होते थे जिससे उन्हे निशाना बनाना आसान था। एक बार ऐसी ही एक बारात को लूटने के बाद लुटेरे जब दुल्हन की ओर बढ़े तो दुल्हन रहस्यमयी ढंग से गायब हो गई। तब से उन्हे देवी का रूप माना जाता है।
आलोपीबाग मंदिर प्रयागराज कैसे पहुंचे –
बात करें आलोपीबाग मंदिर के लोकेशन की तो इसमें बस ट्रेन या हवाई जहाज से आ रहे है तो भी आसानी से पहुँच सकते हैं। अगर आप बस के द्वारा आयेंगे तो आपको सिविल लाइंस से इसकी दूरी 3.5 किमी पड़ेगी। वहां से आप ऑटो बस या ई-रिक्शा के माध्यम से पहुंच सकते है। वहीं प्रयागराज जंक्शन से इसकी दूरी 4-5 किमी पड़ती है जहां से आप आसानी से ऑटो या ई-रिक्शा के जरिए पहुँच सके हैं। वहीं हवाई मार्ग से आप बमरौली एयरपोर्ट आएंगे जहां से आलोपीबाग के मध्य 12 किमी की दूरी हैं। आप कैब, ऑटो के जरिए यहाँ पर पहुँच सकते हैं।
निष्कर्ष –
निष्कर्षतः कहा जा सकता की धार्मिक दृष्टि के साथ ही रहस्यमयी ढंग से आकर्षित करता है। अलोपीबाग मंदिर उन चुनिंदा स्थानों में से है जहां ईश्वर का कोई दृश्य रूप नहीं, पर अनुभव पूर्ण है। यह मंदिर न सिर्फ प्रयागराज का एक धार्मिक केन्द्र है, बल्कि श्रद्धा, रहस्य और आत्मिक शांति का संगम है।
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