मंगलवार, अप्रैल 29, 2025

इलाहाबाद विश्वविद्यालय: ‘पूरब का ऑक्सफोर्ड’ और यहाँ से निकले महान व्यक्तित्व

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वैसे आपने आज के टाइटल देख के ये जान चुके होंगे की हम इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की बात करने वाले है। हाँ वो विश्वविद्यालय जिसको कभी ‘पूरब का ऑक्सफोर्ड‘ तो काभी आईएएस की फैक्ट्री कहा जाता था। जी जिसने भारत के राजनीतिक, साहित्यिक या अन्य क्षेत्रों मे ऐसे प्रतिभाओं को तराशा है जो अपने क्षेत्रों मे भारत माता की शान मे आज भी चार-चाँद लगा रहे हैं। यद्यपि की आज कहीं इसकी चमक फीकी दिखाई पड़ती है परंतु आज भी हजारों छात्रों के सपनों और भविष्य निर्माण मे योगदान दे रहा है। तो चलिए जानते है इसके इतिहास से लेकर वर्तमान की तस्वीर के बारें मे। जहां एक ओर प्रयागराज धर्म और आस्था के लिए जाना जाता है वहीं इसे शिक्षा का केंद्र भी कहा जाता है।

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी का इतिहास और स्थापना – 

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के निर्माण का सपना तत्कालिन संयुक्त प्रांत के लेफ्टिनेंट गवर्नर विलियम मुइर ने देखा था। जिसे हकीकत स्वरूप 9 दिसम्बर 1873 ई. को लॉर्ड नॉर्थब्रुक दिया गया। जिसका नाम मुइर सेंट्रल कॉलेज रखा गया था। 23 सितंबर 1887 ई. को अधिनियम XVIII पारित कर इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की स्थापना की गई। 

इस कॉलेज का वास्तुविद लॉर्ड इमर्सन को माना जाता है। इसका औपचारिक उद्घाटन 8 अप्रैल 1886 ई. मे वायसराय लॉर्ड डफरिन ने किया था। 

ऐसा कहा जाता है की विश्वविद्यालय निर्माण के लिए 5240 रुपये के लोन से शुरुआत की गई थी। उस समय के हिसाब से ये काफी बड़ा अमाउन्ट था जिसे दो साल मे चुका दिया गया था। भारत में स्थापित होने वाला यह चौथा विश्वविद्यालय था। प्रथम प्रवेश परीक्षा का आयोजन सन् 1889 ई. ने किया गया था। 

इसे पूरब का ऑक्सफोर्ड क्यूँ कहा जाता है –

जब इस इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्थापना की गई तो यह भारत की चौथी यूनिवर्सिटी थी। इससे पहले कलकत्ता, मद्रास एवं बॉम्बे यूनिवर्सिटी की स्थापना की जा चुकी थी। उस समय यह उत्तर भारत के आकर्षण का केंद्र के साथ शिक्षा मे भी उत्कृष्ट थी। साथ ही ऐसा माना जाता था की यहाँ से पढ़ने वाले को ऑक्सफोर्ड मे सीधा प्रवेश मिल जाता था। 

साथ ही कॉलेज को उसकी शानदार स्थापत्य के लिया जाना जाता है। यह प्राचीन एवं पाश्चात्य विचारों एवं परंपराओं का मिक्स्चर होने की भी एक बजह है इसे पूरब का ऑक्सफोर्ड कहे जाने की। 

इलाहाबाद विश्वविद्यालय का शैक्षणिक महत्त्व और प्रतिष्ठा –

 विश्वविद्यालय के शैक्षिक महत्व की बात की जाय तो यह आपको कला, विज्ञान, कॉमर्स, मैनेजमेंट, लॉ के साथ रिसर्च भी विभिन्न विषयों मे जाते हैं। यह विश्वविद्यालय किसी वैज्ञानिक रिसर्च की अपेक्षा राजनीति, साहित्य, कला और समाज में अपने दृष्टिकोण के लिए पहचानी जाती है। 

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी ने प्रधानमंत्री के साथ कई मुख्यमंत्री भी देश एवं प्रदेश को दिए है। साथ ही प्रशासक, लेखक कवि आदि लोगों ने भी अपने झंडे गाड़े है। 

अपने 138 सालों के इतिहास मे इस यूनिवर्सिटी ने अपने 65 पेंटेंट दर्ज करवाने के साथ ही 5000 रिसर्च पेपर प्रकाशित करवाएं है। अभी तक लगभग 1500 ज्यादा बुक के अध्याय छपे है। 

 इलाहाबाद विश्वविद्यालय से निकले महान व्यक्तित्व –

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से देश को कई प्रधानमंत्री प्राप्त हुए है। जिसमें भारत के गुलजारी लाल नंदा, वीपी सिंह एवं चंद्रशेखर शामिल है। वही मुख्यमंत्री मे गोविंद वल्लभ पंत, हेमवती नंदन बहगुणा , अर्जुन सिंह नारायण दत्त तिवारी आदि लोग हुए है। वहीं बात किया जाय हिन्दी साहित्यकारों की तो महादेवी वर्मा, हरिवंश राय बच्चन, फिराक गोरखपुरी, धर्मवीर भर्ती, चंद्रधर शर्मा गुलेरी आदि का नाम आता है। 

इसकी पूरी लिस्ट आप विकिपिडिया पर आसानी से देख सकते हैं। 

इलाहाबाद विश्वविद्यालय की वर्तमान स्थिति और चुनौतियाँ –

हालांकि वर्तमान समय मे इलाहाबाद विश्वविद्यालय किस साख कुछ नीचे आ गई है। यह NIRF रैंकिंग के टॉप 100 मे भी अपना स्थान नहीं बना पा रहा है। फिर भी इसके गुणात्मक वृद्धि के लिए लगातार कोशिश की जा रही है। जिसका परिणाम भी दिखाई दे रहा मैनेजमेंट मे 100-125 बैंड कटेगरी में चुना गया है। 

अपनी स्थिति मे लगातार सुधार के लिए मैनेजमेंट प्रत्येक साल सेमीनार एवं वर्क्शाप आयोजित कराए जा रहे है। अभी पीजी मे 325 छात्रों का कैम्पस सिलेक्शन हुआ है। एक चैनल से बात करते हुए एक प्रोफेसर ने कहा विश्वविद्यालय के पास आईआईटी एवं मेडिकल फील्ड ना होने के कारण भी रैंकिंग में पिछड़ने का एक कारण है। उनके अनुसार हम लगातार प्रगति कर रहे हैं। आपको जल्दी ही इसका असर रैंकिंग मे दिखेगा। और जल्द ही हम पुराने गौरव को प्राप्त कर लेंगे। 

इसके अलावा हॉस्टल की सुविधा ऑडिटोरीअम की सुविधाओं का विस्तार किया जा रहा है। वही प्रोफेसर का आवास मे विस्तार कर बेली की ओर बनाया गया। वहीं कला संकाय मे लाइब्रेरी एक्स्टेन्शन का कार्य भी पूरा होने वाला है।   

जहां इस विश्वविद्यालय का हाल 1970 के दशक से खराब होने शुरू हूए। वहीं इसके 2005 मे केन्द्रीय विश्वविद्यालय बनने पर भी कोई अंतर ना हुआ और लगातार गिरावट जारी रही। अभी इसमे लगातार सुधार किया जा रहा है। खाली पड़ी प्रोफेसर की सीटों को भरा जा रहा। 

निष्कर्ष –

Quot Rami Tot Arbores”(कोट रामी टोट आर्बोरेस) अर्थात् “जितनी शाखाएं उतने वृक्ष” विज़न के साथ इलाहाबाद विश्वविद्यालय अपनी सेवाएं लगातार दे रहा है। जहां एक ओर इसने प्रधानमंत्री जैसे देश के प्रतिष्ठित पद को सुशोभित करने वालों को देश को समर्पित किया है। वहीं प्रशासन, साहित्य राजनीति, कला मे भी काफी प्रतिभाएं दी है। लोन के ऋण से शुरू हुआ 13 बच्चों के साथ विश्वविद्यालय अपनी विशालता को दर्शाता है। जल्दी ही उम्मीद करते हैं की अपनी खोई साख को वापस पाए और छात्रों एवं देश के निर्माण मे ऐसे अनवरत आगे बढ़ता रहे।  

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

  1. 1. इलाहाबाद विश्वविद्यालय को ‘पूरब का ऑक्सफोर्ड’ क्यों कहा जाता है?
    उच्च शैक्षणिक गुणवत्ता, प्रतिष्ठित संकाय और यहाँ से निकले विद्वानों की उपलब्धियाँ हैं जो इलाहाबाद विश्वविद्यालय को पूरब ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय का उपनाम देती हैं।
  2. 2.इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्थापना कब हुई थी?
    इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्थापना 23 सितंबर 1887 ई. को हुई थी। तथा इसे 2005 मे सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा दिया गया।
  3. 3. इस विश्वविद्यालय से कौन-कौन से प्रसिद्ध नेता निकले हैं?
    पंडित जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, वी.पी. सिंह, मदन मोहन मालवीय गुलजारीलाल नंदा, हरिवंश राय बच्चन महादेवी वर्मा आदि जैसी शख्सियत निकले हैं।
  4. 4. इलाहाबाद विश्वविद्यालय का शिक्षा स्तर कैसा है?
    इलाहाबाद विश्वविद्यालय को इसके उच्च शिक्षण स्तर, शोध कार्यक्रमों और अनुभवी शिक्षकों के लिए जाना जाता है।
  5. 5. क्या इलाहाबाद विश्वविद्यालय का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान था?
    हाँ, यहाँ के तत्कालिन छात्रों और शिक्षकों ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था और कई बार आंदोलन का केंद्र भी बना था।

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