भूमिका: त्रिवेणी संगम प्रयागराज
कभी सोचा है कि नदियाँ सिर्फ जल नहीं हैं; वे भावना, इतिहास और चेतना की धारा भी हैं? जब तीन बड़ी नदियाँ (गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती) एक स्थान पर मिलती हैं, तो वह स्थान सिर्फ संगम नहीं रहता, बल्कि तीर्थराज कहलाता है। त्रिवेणी संगम प्रयागराज भारत का एक पवित्र स्थान ही नहीं; यह आत्मा की शांति, मोक्ष की इच्छा और सदियों से चली आ रही परंपराओं का भी केंद्र है।
त्रिवेणी संगम का धार्मिक और पौराणिक महत्त्व
त्रिवेणी संगम प्रयागराज में तीन नदियों के संगम को कहा जाता है। गंगा एक मोक्षदायिनी नदी है, जो स्वर्ग से आती है। यमुना श्रीकृष्ण की करुणा, प्रेम और प्रियता का प्रतीक है। सरस्वती—यहाँ अदृश्य रूप से प्रवाहित ज्ञान और चेतना का गूढ़ प्रतीक है।
इसके बारे में पद्म पुराण, महाभारत, स्कंद पुराण और रामायण में बार-बार बताया गया है। यहाँ स्नान करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और आत्मा शुद्ध होती है।
कुंभ मेला और संगम स्नान
त्रिवेणी संगम में माघ के महीने में हर वर्ष मेला लगता है। जबकि प्रत्येक 6 वर्ष बाद अर्ध कुम्भ का मेला लगता है। वहीं संगम का सबसे पवित्र चित्र हर बारह वर्षों में आयोजित होने वाला महाकुंभ मेला है। यहाँ लाखों श्रद्धालु, नागा साधु, विदेशी भक्त और तीर्थयात्री आते हैं।
स्नान (मुख्य उत्सव) की तिथियाँ: जैसे मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या, बसंत पंचमी और महा शिवरात्रि के दिन यहां पर भारी मात्रा में श्रद्धालु आकर अपनी संगम स्नान करते हैं।
मान्यता: त्रिवेणी संगम के बारे में कहा जाता है की यहाँ भी अमृत कलश से गिरी बूँदें पड़ी थीं। इसलिए इस जगह को अमृत तुल्य माना जाता था।
कैसे दिखता है त्रिवेणी संगम प्रयागराज?
जब भी आप त्रिवेणी संगम जाएंगे तो आपको गंगा एवं यमुना के जल में विभिन्नता आसानी से दिख जाएगी। जहां गंगा का जल साफ और हल्का नीला होता है, वहीं यमुना के जल जल गहरा और थोड़ा गाढ़ा है। वहीं सरस्वती नदी अदृश्य रूप में प्रवाहित मानी जाती है। मान्यता है की यह नदी प्राचीन समय में यहां से प्रवाहित होती थी जो की अभी लुप्त हो गई है।

ऐतिहासिक संदर्भ –
- सातवीं शताब्दी में ह्वेन त्सांग ने अपनी भारत यात्रा के दौरान प्रयागराज और संगम की प्रशंसा की।
- यहाँ हर पांच से छह वर्षों में सम्राट हर्षवर्धन ने प्रयाग मेले, एक बड़ी धार्मिक सभा, आयोजित की।
- मुगलकाल में भी अकबर ने संगम क्षेत्र में किला बनाया और प्रयागराज को ‘इलाहाबाद‘ नाम दिया।
आकर्षक गतिविधियाँ और पर्यटन स्थल
- बोटिंग – त्रिवेणी संगम तक नाव द्वारा जाना अपने आप में एक दिव्य अनुभव है।
- हनुमान मंदिर – जल में लेटे हनुमान जी के दर्शन संगम के पास ही होते हैं।
- अकबर का किला – इतिहास प्रेमियों के लिए।
- गंगा आरती – शाम को होने वाली आरती अद्भुत आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देती है।
- गंगा-जमुनी संस्कृति – यहाँ हिंदू-मुस्लिम एकता की झलक भी स्पष्ट देखी जा सकती है।
कब एवं कैसे पहुंचें?
आप अगर त्रिवेणी संगम प्रयागराज की यात्रा करना चाहते हैं तो सबसे सही समय अक्टूबर से मार्च माना जाता है। यहां प्रत्येक वर्ष आयोजित होने वाले माघ मेला में आप सकते है। जिसमें आप को आस्था और दिव्यता की खूबसूरत अनुभव होगा। आप निकटतम प्रयागराज जंक्शन से कैब या ऑटो के द्वारा आ सकते हैं जहां से दूरी लगभग 4 किमी है। वहीं अगर आप हवाई मार्ग से आ रहे हैं तो बमरौली एयरपोर्ट से लगभग 15 किमी दूरी पर संगम स्थित है। जहां आप कैब के द्वारा यहां पहुँच सकते हैं। बस के द्वारा सिविल लाइंस बस स्टेशन से 3 किमी की दूरी पर स्थित है।
निष्कर्ष –
त्रिवेणी संगम प्रयागराज केवल एक भौगोलिक स्थान नहीं, बल्कि आस्था का संपूर्ण सार है। यहाँ आकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे जीवन की तीन धाराएँ — शरीर, मन और आत्मा — एक साथ एकत्र होकर शांति की ओर बह रही हों। यह स्थल हमें हमारे मूल, हमारी संस्कृति और हमारे विश्वास से जोड़ता है।

