प्रयागराज – एक ऐसा नगर जिसकी गूंज वेदों से लेकर स्वतंत्रता संग्राम तक सुनाई देती है। इसके हर मोड़ पर कोई न कोई कथा, कोई इतिहास जीवित है। ऐसा ही एक स्थल है बड़ी कोठी दारागंज प्रयागराज में – एक ऐसी जगह जो सिर्फ इमारत नहीं, बल्कि आज़ादी की लड़ाई की गूढ़ कहानियों की साक्षी है। आज हम आपको इस ऐतिहासिक धरोहर से जुड़ी कुछ अनसुनी बातों से रूबरू कराएंगे।
बड़ी कोठी दारागंज प्रयागराज का इतिहास & वास्तुकला –
बड़ी कोठी, दारागंज भव्य इमारत का निर्माण 1820 ई. में एक गल्ला व्यापारी ने करवाया था। वें हरियाणा के जींद से प्रयागराज आए थे। इस कोठी के निर्माण के लिए राजस्थान और जैसलमेर के कारीगर बुलाए गए। इस हवेली के पत्थर पर ऐसी बारीक नक्काशी की कलाकारी की गई है। ऐसा कहा जाता है कि मुख्य कलाकार ने खुद ही अपनी उंगलियाँ काट लीं जिससे फिर से ऐसी कारीगरी ना हो।
हवेली का स्थापत्य राजस्थानी और मुगल प्रभावों का अद्भुत मेल है। यह कारीगरी आज भी कोठी की दीवारों पर दिखाई देती है।
ब्रिटिश काल & स्वतंत्रता संग्राम –
ब्रिटिश राज में यह कोठी कभी टैक्स ऑफिस बनी, कभी जेल, तो कभी बगावत की गुप्त योजना की जगह। स्वतंत्रता सेनानी इसी कोठी के तहखानों में बैठकर अंग्रेज़ी हुकूमत को चुनौती देने की योजनाएँ बनाते थे। और जब अंग्रेज़ छापा मारते, तो क्रांतिकारी अख़बार और दस्तावेज़ इसी कोठी के कुएँ में फेंक दिए जाते।
स्वतंत्रता संग्राम हवेली प्रयागराज –
- जब भारत में आज़ादी की लड़ाई चल रही थी, तब यह कोठी केवल एक शाही निवास नहीं रही।
- 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के समय यहाँ गुप्त सभाएं होती थीं।
- स्वतंत्रता सेनानी इस कोठी में गुप्त प्रेस चलाते थे, जहाँ पर्चे और अख़बार छापे जाते थे।
- अंग्रेज़ों द्वारा छापा मारने पर क्रांतिकारी दस्तावेज़ों को हवेली के कुएं में फेंक दिया गया था — ये कुआँ आज भी हवेली में मौजूद है।
- यहाँ से निकलने वाले विचारों ने नेहरू, शास्त्री, मालवीय जैसे विचारकों को भी प्रभावित किया।
यह कोठी साक्षी रही उस समय की जब हर शब्द, हर विचार, हर पर्चा क्रांति था।
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आज का स्वरूप (Prayagraj heritage hotel) –
पेरुमल अग्रवाल जी के पोते राय अमरनाथ ने आजादी के संघर्ष में सक्रियता से भाग लिया था। उन्होंने भारत छोड़ो आन्दोलन में भी भाग लिया था और 3 सालों से अधिक समय तक जेल में भी रहे थे। आजादी से पहले संयुक्त प्रांत के पार्षद चुने गए थे एवं आजादी के बाद काँग्रेस के महासचिव भी रहे थे।
राय अमरनाथ की मृत्यु के उपरांत इनके पुत्र सुरेश अग्रवाल के नाम पार हवेली थी। लेकिन दुर्भाग्यवश एक सड़क दुर्घटना में केवल इनके पोते दुर्गेश अग्रवाल जीवित रहे। बाद में इन्होंने इस कोठी को अपने मित्र रंजन सिंह को बेच दी।
वर्तमान में यह कोठी को नया स्वरूप मिला है – एक हेरिटेज होटल के रूप में। बाहर से बाहर से कोठी का पुराना वैभव अभी भी जस का तस है। लेकिन अंदर प्रवेश करते ही आधुनिक सुख-सुविधाओं की एक दुनिया खुलती है। जिसमें 25 आलीशान कमरे, शाकाहारी भोजनालय, छत पर बना स्विमिंग पूल है। छत से गंगा के घाटों की शानदार झलक देखने को मिलता है।
है।
निष्कर्ष –
बड़ी कोठी दारागंज प्रयागराज में स्थित ना सिर्फ एक भवन है, बल्कि एक भावना भी है। यहाँ के पत्थरों में कलाकारी है, तो वहीं हवेली हमें क्रांति के लिए किए गए सफलतम प्रयासों को स्मरण कराती है। कभी गुलामी के दिनों के देखी यह दीवारें आज आजादी की दिनों का आनंद ले रही। प्रयागराज आने वालों के लिए यह कोठी एक अनुभव है – इतिहास को जीने जैसा जैसा अनुभव। महाभारत काल से जुड़े स्थल लाक्षागृह के बारें में भी पढ़ें।

