प्रयागराज में स्थित इलाहाबाद हाई कोर्ट भारत की पुरानी उच्च उच्च न्यायालयों में से एक है। हमारे इतिहास के अतीत में ना सिर्फ फैसले नहीं सुनाए गए बल्कि इंकलाब के नारें और साज़िशें भी हुई। लेकिन आज इस ऐतिहासिक इमारत के कई भाग बंद हैं। उस हिस्से के दरवाज़े जंग खा चुके हैं, न्याय के रास्ते भुला दिए गए हैं। अब शेष हैं तो इलाहाबाद हाई कोर्ट की बंद अदालतें पीछे की कहानियाँ, और सिर्फ कानाफूसी।
जब इलाहाबाद हाई कोर्ट की बंद अदालतें सिर्फ फैसले नहीं, मिसाल देती थीं
उत्तर प्रदेश में हाई कोर्ट की स्थापना 17 मार्च 1866 को आगरा में हुई थी। लेकिन बाद में 1869 ई. में इलाहाबाद स्थानांतरित किया गया। जो की भारत की प्रथम हाईकोर्ट में से एक थी। बाद में इसका नाम बदलकर इलाहाबाद में उच्च न्यायिक न्यायालय रखा गया।
यहाँ सिर्फ कानून ही नहीं बल्कि क्रांतिकारी विचार, ब्रिटिश विरोध, और नैतिक साहस भी देखने को मिला था। लेकिन अब, इसी न्याय मंदिर के अंदर कुछ कोर्ट रूम ऐसे हैं, जिन्हें सालों से खोला ही नहीं गया।
बंद दरवाज़े – न्याय का वो हिस्सा जो अब मौन है
ऐसे कोर्ट रूम जिनमें कभी
- राजनीतिक कैदियों की सुनवाई होती थी,
- फांसी की सज़ा दी जाती थी,
- और इंकलाब के खिलाफ मुकदमे चलाए जाते थे —
जहां आज धूल, जाले और बंद दरवाज़ों की चुप्पी नें अपना स्थान बना लिया है। कुछ पुराने कर्मचारी बताते हैं कि “वो लकड़ी की कुर्सी जिस पर जज बैठता था, अब भी वैसी ही रखी है… बस अब कोई बैठता नहीं।”
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जेल से कोर्ट तक – वो सुरंग जो अब गुम है
ब्रिटिश ज़माने में इलाहाबाद हाई कोर्ट की बंद अदालत से एक गुप्त सुरंग जेल परिसर से जुड़ी होती थी।
जिसका उद्देश्य था कैदियों को भीड़ से दूर, सुरक्षित कोर्ट तक लाना।
अब वो सुरंग फिलहाल बंद है। कहते हैं कि नक्शों में अब भी उसका संकेत मिलता है, पर अंदर जाना मना है।
भगत सिंह के मुक़दमे की दस्तावेज़ी गूंज
2014 में अदालत की एक पुरानी लाइब्रेरी से भगत सिंह केस की सुनवाई की दस्तावेज मिलें थे। ये दस्तावेज़ “लाहौर षड्यंत्र केस” से संबंधित थे। इसमें मुकदमे की कार्यवाही, गवाहों के बयान और अदालती आदेश शामिल थे।
इन दस्तावेजों में से एक में सर शादी लाल का गवाही है जो भगत सिंह को दोषी ठहराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। जबकि एक अन्य दस्तावेज में न्यायाधीश सैयद आगा हैदर का इस्तीफा दिया जाना है। जिसका मुख्य कारण है भगत सिंह को फांसी की सजा सुनाने से इनकार करना था।
पर अफसोस जिस कोर्ट रूम में यह सब हुआ था, अब वहां जाना मना है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट की बंद अदालत की British Jail – अब सिर्फ एक दीवार
हाई कोर्ट परिसर के पास छोटा ब्रिटिश काल में जेल कॉम्प्लेक्स हुआ करता था। यहाँ सुनवाई से पहले स्वतंत्रता संग्राम के दौरान क्रांतिकारियों को रखा जाता था। जिसे अंग्रेज “होल्डिंग ब्लॉक” कहते थे।
अब वहां की एक दीवार, एक पुराना ताला, और टूटते गेट बचे हैं जो गवाह हैं उस इतिहास के, जो बताया नहीं गया।
क्या इतिहास को ऐसे ही बंद कर दिया जाएगा?
इन बंद दरवाज़ों के पीछे सिर्फ लकड़ी और ईंटें नहीं हैं, बल्कि वो कहानियाँ हैं जो आज की पीढ़ी को जाननी चाहिए। क्या कभी इन्हें खोला जाएगा? क्या सरकार इन्हें “heritage courtroom” घोषित करेगी? या ये ऐसे ही इतिहास की सबसे बड़ी “मूक गवाह” बनकर रह जाएँगी?
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