आज हम आपको इलाहाबाद किले में स्थित अशोक स्तम्भ के बारें में कुछ रोचक तथ्य बताने जा रहे हैं। प्रयागराज के किले को अकबर ने बनवाया था पर आज इसके इतर अशोक स्तम्भ के बारे में बात करेंगे।
प्रयागराज में मौजूद इस स्तम्भ कों सम्राट अशोक के द्वारा तीसरी शताब्दी में बनवाया गया था। यह स्तम्भ 35 फिट ऊंचा है जिस पर ब्राह्मी लिपि में अशोक के अभिलेख खुदे है। अशोक स्तम्भ बलुआ पत्थर से निर्मित है।
अशोक स्तम्भ के वर्तमान स्थिति में होने को मतभेद –
पुरातात्विक मत के अनुसार, अशोक स्तम्भ को कौशांबी से लाकर से लाया गया है। लेकिन एक ऐसा मत माना जाता है की इस स्तम्भ को यहीं पर बनाया गया था। अशोक ने प्रयाग में सभा करके धर्म का प्रचार करने का फैसला किया।
कई राजाओं के शिलालेख है अशोक स्तम्भ पर मौजूद –
अशोक के अलावा सम्राट समुन्द्रगुप्त का प्रशस्तिपत्र खुदा है। जिसे प्रयागप्रशस्ति के नाम से जाना जाता है। इसमें सांकृत काव्य खुदा है जिसमें समुन्द्रगुप्त के विजयों एवं दानशीलता का वर्णन मिलता है। इस स्तम्भ में गुप्त सम्राज्य के शासकों के साथ राज्य विस्तार के बारे में भी पता चलता है।
अशोक स्तंभ के नीचे ‘गुप्त द्वार’ की कहानी –
कुछ मान्यताएं एवं लोककथाओं के अनुसार ऐसा माना जाता है की स्तम्भ के नीचे तहखाना है। जिसमें राजा अशोक के शिलालेख या रहस्यमयी वस्तु छिपी हुई है।
ब्रिटिश काल में किला जब सैन्य नियंत्रण में था तो खुदाई करवाया गया, जिसमें पुरातात्विक अवशेष व धातु की वस्तुएं मिली जिसे संजोया नहीं गया।
अकबर ने इस स्तंभ को तोड़ने के बजाय संरक्षित क्यों रखा?
अकबर नें वैसे तो कई हिन्दू सरंचनाएं टोडी परंतु इस स्तम्भ को मूल स्थान पर रखने के साथ ही महल और किले का निर्माण किया। इसके पीछे उसका उद्देश्य धर्मनिपेक्ष शासक की छवि विकसित करना था।
निष्कर्ष –
इस प्रकार प्रयागराज ना केवल एक तीर्थस्थल है बल्कि भारत के 3 साम्राज्यों के राजनीतिक और सांस्कृतिक विरासत का संगम है। साथ ही अशोक स्तम्भ पर हजारों साल पुराने इतिहास का एक नक्शा है।