परिचय
प्रयागराज जिसे ‘तीर्थों का राजा’ कहा जाता है, यही एक स्थान है जिसे महाभारत की घटना से जोड़ा जाता है। जिसे ‘प्रयागराज का लाक्षागृह’ के नाम से जाना जाता है। अब इसे ‘प्रयागराज का लाक्षागृह’ क्यों कहना पड़ रहा है इसका जवाब आपको लेख में आगे मिल जाएगा। ऐतिहासिक और लोककथाओं स्थानों का खूबसूरत संगम प्रयागराज की सांस्कृतिक रूप से धनी होने का प्रमाण देता है।
यह रहस्यमयी स्थान कहां है?(Mahabharat cave Prayagraj)
बात करें ‘प्रयागराज का लाक्षागृह स्थिति की तो यह प्रयागराज जिले के हंडिया तहसील के पास स्थित है। स्थानीय लोगों के अनुसार यह गुफा हंडिया से लगभग 5–7 किलोमीटर की दूरी पर है। गुफा के बारें में ऐसा कहा जाता है की कुछ वर्षों पहले तक यह क्षेत्र अपेक्षाकृत अधिक खुला था।
आज भी यहां गुफा एक छोटी सी संरचना है, जो पत्थर और मिट्टी से बना एक संकरा रास्ता दिखाई देता है।
लाक्षागृह की कहानी : महाभारत की एक षड्यंत्र कथा
महाभारत के अनुसार, पांडव राज्य में लोकप्रिय होते जा रहे थे जिससे आहत होकर दुर्योधन ने उन्हें मारने की योजना बनाई। उसने एक ऐसा भवन बनवाया जिसको बनाने के लिए लाख, तेल और घी जैसे ज्वलनशील पदार्थों का प्रयोग किया गया। उसकी योजना को विदुर नें समझ लिया और पांडवों को इसकी खबर दी। तथा एक गुप्त सुरंग के रास्ते के माध्यम से बाहर निकलने में सहायता की।
प्रयागराज के हंडिया में लाक्षागृह?
यह मान्यता प्रमाणिक ना होकर केवल मान्यता एवं लोककथाओं तक सीमित है। यह मान्यता हंडिया क्षेत्र के बुज़ुर्गों और संतों की बातों में बार-बार यह गुफा पांडवों से जोड़ी जाती है।
यहाँ यह विश्वास किया जाता है कि – लाक्षागृह से बचने के बाद ऐसा माना जाता है की पांडवों नें यहीं पर शरण ली थी। यहां स्थित गुफा ही वह गुप्त मार्ग था जिससे पांडव लाक्षागृह से बचकर सुरक्षित निकले थे।
जबकि कुछ लोगों का ऐसा भी मानना है कि यह मुख्य सुरंग की एक छोटी शाखा थी। जो आगे कहीं गंगा तक जाती थी।
प्रयागराज का लाक्षागृह(Pandav cave Prayagraj) लोककथा या ऐतिहासिक संकेत?
इस स्थान का कोई प्रमाण तो नहीं मिलता। कोई कथा जब ग्रंथों से निकलकर लोकजीवन में बसी होती है, तो वह सिर्फ एक कहानी नहीं रहती वह संस्कृति बन जाती है।
- प्रयागराज जैसे तीर्थो में महाभारतकाल से जुड़ी कई जगहें प्रचलित हैं: अक्षयवट, किला क्षेत्र, भारद्वाज आश्रम, झूंसी आदि।
- उसी तरह हंडिया की यह गुफा भी पांडवों से संबंधित मानी जाती है जो आज भी श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है।

भारत में और कहाँ‑कहाँ है लाक्षागृह की मान्यता?
प्रयागराज के अलावा अन्य जगहों पर भी लाक्षागृह की मान्यता है जिसमें बरनावा और लखामंडल पर सीमित‑स्तरीय पुरातत्व या शैक्षणिक लेखन उपलब्ध है –
- बरनावा (वरनावत), ज़िला बागपत, उत्तर प्रदेश – सुरंग‑आधारित अवशेष और खुदाई की तैयारी ASI ने भी इसे स्वीकृत किया है।
- लखामंडल, देहरादून (उत्तराखंड) – यमुना‑तट पर स्थित प्राचीन शिव‑मंदिर‑समूह के पास इस स्थल को माना जाता है। साथ ही एक ‘धुँधी ओदारी’ नामक सुरंग भी है।
- पांडव स्थान, समस्तीपुर, बिहार – ऐसा माना जाता है की पांडव सुरंग से निकलकर यहाँ आये थे, और कुछ दिन यहां रुके थे। हालिया उत्खननों में प्राचीन काल के कुछ अवशेष मिले हैं।
- राजमहल (झारखंड) व नरसिंहपुर (म. प्र.) – पांडव‑शरण की लोककथाएँ सुनाई जाती है। यहां का कोई पुरातात्विक प्रमाण उपलब्ध नही है।
Lakshagrih Handia का दृश्य कैसा है इस गुफा का?
यहां पर एक छोटी सी गुफा या सुरंग जैसी संरचना है। गुफा के आस-पास साधारण ग्रामीण परिवेश है।
यहां ना कोई मंदिर है और ना ही कोई संरक्षित स्मारक है, सिर्फ मिट्टी-पत्थर से बनी दीवारें और एक अंधेरी सुरंग स्थित है।
निष्कर्ष: विश्वास और विरासत
अगर प्रमाणिकता की दृष्टि से देखा जाय तो शायद यह लोककथा तक ही नजर आता है। पर यह हमें प्रयागराज के सांस्कृतिक वैभव की गहराई दिखाती है। हंडिया की यह गुफा हमें स्मरण दिलाती है कि महाभारत सिर्फ एक युद्ध नहीं, बल्कि हजारों वर्षों से बहती लोककथाओं का संगम है और प्रयागराज, उनका स्थायी ठिकाना।
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