सोमवार, जुलाई 14, 2025

सोमेश्वर महादेव मंदिर, अरैल प्रयागराज – चंद्रमा की तपस्थली और चमत्कारी त्रिशूल का शिवधाम

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परिचय

प्रयागराज में स्थित आज हम आपलोगों कों एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे है, जहां पूजा-अर्चना करने से लोगों के असाध्य रोग भी दूर हो जाते है। प्रयागराज में स्थित आपने अरैल घाट के बारे में तो जरूर सुना होगा। आज हम इसी तट के पास स्थित एक ऐसी मंदिर के बारे में बात करने जा रहे है, जिसकी स्थापना चंद्रदेव ने की थी।  पौराणिक ऊर्जा से परिपूर्ण शिवधाम है – सोमेश्वर महादेव मंदिर। 

यह मंदिर न केवल चंद्रमा के तप और भगवान शिव की कृपा से जुड़ा है, बल्कि इतिहास के अनेक उतार-चढ़ाव का भी साक्षी रहा है। इस मंदिर के विशेषता इसका चमत्कारी त्रिशूल, औरंगज़ेब का असफल हमला, मराठों द्वारा पुनर्निर्माण, और मंदिर परिसर की विविध मूर्तियाँ – यह सब मिलकर इसे प्रयागराज का एक रोचक धार्मिक केंद्र बनाते हैं।

पौराणिक कथा: चंद्रमा को श्राप और शिव की शरण

पद्म पुराण के अनुसार दक्ष प्रजापति नें अपनी 27 कन्याओं का विवाह चंद्रदेव से किया था, जो सभी नक्षत्र थीं। लेकिन चंद्रमा कों उन सभी में से केवल रोहिणी से विशेष स्नेह था। जिससे उपेक्षित होकर बाकी पुत्रियां दक्ष प्रजापति से  इसकी शिकायत की। जिससे महाराज दक्ष नें चंद्रदेव कों सभी पत्नियों से बराबर स्नेह करने को कहा। लेकिन चंद्रदेव पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। जिससे कुपित होकर दक्ष ने उन्हें क्षय रोग (टीबी) का श्राप दे दिया। इस श्राप के कारण चंद्रदेव का तेज घटने लगा और वे सभी लोकों में उपहास के पात्र बनने लगे।

अपनी मुक्ति के लिए चंद्रदेव ने कई तीर्थों में तप किया, परंतु उन्हे इसका समाधान ना मिल सका। तब ब्रह्मा जी के कहने पर जब वे प्रयागराज के अरैल क्षेत्र में गंगा तट पर आए और कठोर तपस्या की, तब भगवान शिव ने उन्हें दर्शन देकर रोगमुक्त किया और साथ ही उन्हे 16 कलाओं से परिपूर्ण किया। और कहा, “यहां मैं सोमेश्वर रूप में स्थिर हो रहा हूँ।” तभी से यहाँ शिवलिंग की स्थापना हुई और यह स्थान सोमेश्वर महादेव मंदिर कहलाया।

मंदिर की विशेषताएँ और चमत्कारी त्रिशूल

मंदिर का निर्माण तो साधारण लगता है, लेकिन यह अपने भीतर कई रहस्य छुपाये हुए है। इसके भीतर की शक्ति अद्भुत है। गर्भगृह में प्रतिष्ठित प्राचीन शिवलिंग के अलावा इस मंदिर की सबसे अनोखी बात है इसका त्रिशूल। यह त्रिशूल चंद्रमा की गति के अनुसार अपनी दिशा बदलता है, और कई श्रद्धालु इसे अपनी आंखों से देख चुके हैं। जो की वैज्ञानिक भी इसका कारण अभी तक खोजने में असमर्थ हैं। 

वनवास के समय भगवान राम भी यहाँ पूजा-अर्चना करने के बाद आगे के रास्ते कों तय किया था।  

मंदिर परिसर की अन्य मूर्तियाँ

सोमेश्वर महादेव मंदिर केवल शिवलिंग का स्थान नहीं है, बल्कि यह एक संपूर्ण देवालय परिसर है।  सोमेश्वर महादेव के अलावा यहाँ पर गर्भगृह के दरवाजे पर द्वादश ज्योतिर्लिंग के चित्र बनें हैं। साथ ही इस मंदिर परिसर में निम्न प्रमुख मूर्तियाँ विराजमान हैं:

  • भगवान हनुमान: संकटमोचन रूप में, मंदिर के द्वार के पास।
  • भगवान गणेश: विघ्नहर्ता के रूप में, पूजन का पहला स्थान।
  • माता पार्वती: शिव-पार्वती विवाह की स्मृति में।
  • नंदी महाराज: गर्भगृह के सामने, शिव के वाहन रूप में।
  • नवग्रह मूर्तियाँ: मंदिर की परिधि में, विशेष रूप से चंद्र की पूजा के साथ नवग्रह पूजन भी होता है।

कुछ श्रद्धालु शीतला माता, काल भैरव, एवं शिव-पार्वती रथ स्वरूपों की मूर्तियाँ भी परिसर के कोनों में स्थापित करते रहे हैं।
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सोमेश्वर महादेव मंदिर अरैल प्रयागराज

इतिहास: औरंगज़ेब का हमला, चमत्कार और मराठों द्वारा पुनर्निर्माण

17वीं शताब्दी के मध्य में मुगल शासक औरंगज़ेब ने प्रयागराज सहित पूरे उत्तर भारत में मंदिरों को ध्वस्त करने का अभियान चलाया। उसने सोमेश्वर महादेव मंदिर को भी तोड़ने के लिए अपनी सेना भेजी। किंवदंती है कि जैसे ही सैनिक मंदिर में आगे कों ओर बढ़ते मधुमक्खियों का आक्रमण हो जाता। हारकर औरंगज़ेब नें अपने योजना त्याग दी।

इतिहासकारों के अनुसार, इस घटना के पश्चात औरंगज़ेब ने तुष्टिकरण हेतु मंदिर को कुछ दान भी दिया, जैसे पीतल की घंटियाँ, चांदी का दीप, और वस्त्र दान आदि।

कालांतर में, मंदिर के मुख्य ढांचे को मराठा साम्राज्य के कुछ राजाओं ने 18वीं शताब्दी में पुनः भव्य रूप दिया, विशेष रूप से पेशवाओं के सहयोग से। मंदिर में कुछ मूर्तियाँ इसी कालखंड की मानी जाती है। 

स्थान और यात्रा विवरण

जैसे की हमने आपको ऊपर ही बता दिया है की यह मंदिर अरैल घाट नैनी प्रयागराज में है। बात किया जाए निकटतम रेल्वे स्टेशन की तो नैनी स्टेशन है। इस मंदिर के खुलने एवं बंद होने का समय वैसे 4:00-9:30 बजे शाम तक है। साथ ही श्रावण मास में इसे एक घंटे देरी से बंद किया जाता है। जबकि सोमवार के दिन मंदिर के कपाट रात्री 11:00 बजे तक खुले रहते हैं।  

आप बस, ट्रेन एवं हवाई जहाज से यहां के लिए यात्रा कर सकते हैं। हवाई जहाज से यात्रा के दौरान बमरौली एयरपोर्ट से कैब द्वारा मंदिर पहुंच सकते हैं। जहां से मंदिर और एयरपोर्ट के मध्य दूरी 16 किमी है। वहीं बस यात्रा के द्वारा सिविल लाइंस से आप मंदिर जा सकते हैं। जबकि ट्रेन से आप प्रयागराज जंक्शन से ऑटो, कैब के द्वारा 10 किमी की यात्रा करके आ सकते हैं। वैसे नैनी में छिवकी और नैनी जंक्शन इसके पास पड़ते हैं। 

प्रमुख पर्व और विशेष आयोजन

  • महाशिवरात्रि: रात्रि भर अभिषेक और रुद्राभिषेक होते हैं।
  • श्रावण मास: पूरे महीने विशेष पूजा और कांवड़ यात्राएं आयोजित होती हैं। साथ ही इस माह में यहां पर मेले का भी आयोजन किया जाता है।
  • गंगा दशहरा: घाट पर स्नान और मंदिर में शिव पूजन के लिए भारी भीड़ उमड़ती है।
  • माघ मेला: संगम स्नान के पश्चात इस मंदिर में दर्शन करने की विशेष मान्यता है। इस समय यहां पर काफी भीड़ होती है
प्रयागराज का त्रिशूल मंदिर अरैल प्रयागराज

यात्रियों का अनुभव

श्रद्धालुओं के अनुसार, अरैल घाट स्थित यह मंदिर शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा का अद्भुत संगम है। यहां का वातावरण प्रातः बेला में मंत्रोच्चार, घंटियों की ध्वनि और गंगा की लहरों से भरपूर होता है। मंदिर के पुजारी भक्तों को शिव चालीसा और रुद्राभिषेक करवाते हैं, जो आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है।

निष्कर्ष

सोमेश्वर महादेव मंदिर, अरैल एक ऐसा स्थान है जहाँ पौराणिक गाथाएँ, ऐतिहासिक घटनाएँ और वर्तमान की श्रद्धा मिलकर एक दिव्य वातावरण रचती हैं। जहां पौराणिक उल्लेख इसक महत्व में बढ़ोतरी करता हैं, वहीं वर्तमान इतिहास के पन्ने की कहानियां और रोचक बना देती है। प्रयागराज आने पर एक बार इस दिव्य एवं अद्भुत शिवधाम के दर्शन करना आपके आध्यात्मिक अनुभव को पूर्णता देगा।

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