प्रयागराज का नाम सुनते ही जहन में त्रिवेणी संगम की तस्वीर उभर आती है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि नए यमुना पुल के बनने से पहले लोग नदी के उस पार से इस पार कैसे आते थे?आज हम बात करेंगे गऊघाट पुल (जिसे आम भाषा में पुराना यमुना पुल भी कहा जाता है) की — जो कभी इंजीनियरिंग का नायाब नमूना माना जाता था और जिसकी पहचान उसके मजबूत “हाथी पांव” जैसे पिलरों से होती थी। पुराना यमुना पुल अपने इतिहास को 160 सालों से संजोये अनवरत अपने सेवाओं से भारत की अर्थव्यवस्था के साथ सभी पूर्वी भाग कों जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
गऊघाट पुल या पुराना यमुना पुल का इतिहास: एक नजर
इस ऐतिहासिक पुल का निर्माण वर्ष 1855 में शुरू हुआ था। लेकिन भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (1857) के कारण इसे बीच में रोकना पड़ा। लार्ड कर्जन इस पुल को इलाहाबाद किले के पास बनवाना चाहते थे, मगर तकनीकी समस्याओं के कारण यह योजना 1859 में ठप हो गई।
अंततः यह पुल 1865 में बनकर पूरी तरह तैयार हुआ।
कोलकाता से दिल्ली तक का रास्ता
यह पुल प्रयागराज जंक्शन को नैनी जंक्शन से जोड़ता है। अंग्रेजों की योजना थी कोलकाता से दिल्ली को जोड़कर व्यापारिक मार्ग को मजबूत बनाना, और इसी रणनीति के तहत यह पुल हावड़ा-दिल्ली रेल मार्ग पर तैयार किया गया।
लागत, निर्माण और रहस्यमयी पिलर
इस पुल की कुल लागत थी 44 लाख 46 हजार 300 रुपये, और इसे बनने में कुल 6 साल लगे।
इसमें कुल 14 पिलर हैं, जो 1862 तक बनकर तैयार हो गए थे। लेकिन सबसे खास बात है इसका 13वां पिलर, जिसे लोग “हाथी पांव” या “जूते जैसा पिलर” कहते हैं।
इस एकमात्र पिलर को बनने में 20 महीने लग गए, क्योंकि कहते हैं कि:
“दिन में प्लेटफॉर्म बनता और रात में ध्वस्त हो जाता था।”
लोककथाओं के अनुसार, इसे बनाने से पहले पूजा-पाठ की विधि कराई गई थी, तब जाकर यह पिलर का निर्माण हुआ था। जो की लोगों से छुपाया गया था। तकनीकी रूप से इसमें 9 फुट गहरा कुआं खोदकर राख और पत्थर की मजबूत नींव डाली गई, और फिर उसका डिजाइन भी बदला गया।
एक साथ रेल, सड़क और नावों का संगम
शुरुआत में इस पुल पर सिर्फ एक रेलवे ट्रैक था, लेकिन बाद में दो ट्रैक कर दिए गए। वर्ष 1927 में यहाँ पर सड़क मार्ग भी शुरू कर दिया गया। इस तरह यह पुल तीन लेवल पर काम करने वाला बन गया:
- ऊपर: रेलवे लाइन
- बीच में: सड़क
- नीचे: नावों का रास्ता
जहाँ पहले यहाँ से कुछ ही रेलगाड़ियाँ गुजरती थीं, अब प्रतिदिन लगभग 200 रेलगाड़ियाँ इस पुल से होकर जाती हैं। हालाँकि अब इस पर भारी वाहनों की आवाजाही नहीं होती, क्योंकि नए यमुना पुल ने इसका बोझ कम कर दिया है।
निष्कर्ष
गऊघाट पुल या पुराना यमुना पुल न केवल एक यातायात साधन है, बल्कि प्रयागराज के गौरवशाली इतिहास की एक अद्भुत धरोहर भी है। इसकी इंजीनियरिंग, बनावट और पौराणिक कहानियाँ इसे और भी रोचक बना देती हैं। यह आज भी उन यात्रियों के लिए आकर्षण का केंद्र है जो इतिहास से जुड़े स्थानों को करीब से जानना चाहते हैं।
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