त्रिभाषा फार्मूला कों लेकर तमिलनाडु के बाद अब कर्नाटक में भी आवाज उठना शुरू हों गई है। कन्नड विकास प्राधिकरण के नें मुख्यमंत्री कों लिखे पत्र में दो भाषायी शिक्षा पद्धति की ही जरूरत की बात कही है। उन्होंने सीएम कों लिखे पत्र के साथ नम्मा नाडु नम्मा अलविके के सदस्य रमेश बेलमकोंडा की प्रति भी भेजी।
जिसमें बताया गया है की देश में भाषायी असमानता है। और गैर हिन्दी भाषायी पर हिन्दी कों थोपा जा रहा है। साथ ही रमेश बेलमकोंडा ने दो भाषायी फार्मूले को उपयुक्त बताया है। जिसमें सामान्य बोलचाल, शिक्षा और शासन के लिए कन्नड़ और इंग्लिश शी बताया। साथ ही उन्होंने तुलु जैसी उप क्षेत्रीय भाषाओं के लिए भी कहा है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया है की भाषा सीखने का कोई बोझ नहीं होना चाहिए ।
त्रिभाषा फार्मूला कों लेकर तमिलनाडु में सीएम स्टालिन और बीजेपी आमने-सामने –
वहीं तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन लगातार विरोध कर रहे है। उन्होंने कल एक्स अकाउंट पर इसे हिन्दी उपनिवेशवाद की संज्ञा दी है। उन्होंने लिखा की, “इतिहास साफ है। जिन लोगों ने तमिलनाडु में हिंदी को लागू करने की कोशिश की, वे या तो असफल रहे या बाद में डीएमके में शामिल हो गए। तमिलनाडु ब्रिटिश उपनिवेशवाद की जगह हिंदी उपनिवेशवाद नहीं सहेगा।”


उन्होंने तमिलनाडु भाजपा के प्रमुख अन्नामलाई के उस अभियान का भी मजाक बनाया। जिसमें उन्होंने त्रिभाषा फार्मूला के समर्थन में हस्ताक्षर करने का अभियान शुरू किया था। उनका लक्ष्य 1 करोड़ लोगों कों हस्ताक्षर का लक्ष्य बनाया है। स्टालिन ने एक्स पर लिखा, “अब तमिलनाडु में भाजपा का सर्कस जैसा हस्ताक्षर अभियान हंसी का पात्र बन गया है क्योंकि वह तीन भाषाओं के फॉर्मूले के लिए काम कर रहा है। मैं उन्हें चुनौती देता हूं कि इसे 2026 के विधानसभा चुनावों में अपना प्रमुख एजेंडा बनाएं और इसे हिंदी के प्रयोग पर जनमत संग्रह बनने दें।”
वहीं तमिलनाडु प्रमुख भाजपा के प्रमुख अन्नामलाई ने गुरुवार कों तमिल नाम में लागू की गई योजनाओं कों लोकप्रिय ना बनाने का सीएम पर आरोंप लगाया। उन्होंने कहा, “ केंद्र ने तमिलनाडु में कुछ ट्रेनों को तमिल नाम दिया है। यूपीए सरकार में एमके स्टालिन ने ट्रेनों को तमिल नाम देने का क्या प्रयास किया? तमिलनाडु सरकार को हिंदी में महत्वपूर्ण कार्यक्रमों को तमिल नाम देना चाहिए और उन्हें लोकप्रिय बनाना चाहिए।”
क्या है त्रिभाषा फार्मूला –
नई शिक्षा पद्धति(एनईपी 2020) के तहत तीन-भाषा फॉर्मूला बहुभाषावाद को बढ़ावा देता है, जो भाषा सीखने में लचीलापन सुनिश्चित करता है। हालाँकि राज्यों और स्कूलों पर भाषाओं का चुनाव छोड़ दिया गया है। यह अनिवार्य करता है कि विद्यार्थी तीन भाषाएँ सीखें, जिनमें से कम से कम दो भारतीय भाषाएँ हों।
जिसमें पहली भाषा मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा होगी। जबकि दूसरी भाषा के रूप में हिन्दी भाषी क्षेत्र में आधुनिक भारतीय भाषा या अंग्रेजी और गैर हिन्दी क्षेत्र में अंग्रेजी या हिन्दी होगी। और तीसरी भाषा यह अंग्रेज़ी या आधुनिक भारतीय भाषा होगी जो हिंदी भाषी राज्यों में बोली जाएगी। यह अंग्रेज़ी या आधुनिक भारतीय भाषा होगी अगर गैर-हिंदी भाषी राज्य होंगे।
त्रिभाषा फार्मूला में समस्याएं –
तमिलनाडु, पुडुचेरी और त्रिपुरा जैसे राज्य हिंदी को स्कूलों में नहीं सिखाना चाहते हैं। और न ही किसी हिंदी भाषी राज्य ने किसी भी दक्षिण भारतीय भाषा को अपने पाठ्यक्रम में शामिल किया है।
त्रि-स्तरीय भाषाई फॉर्मूले को लागू करने के लिए राज्य सरकारों को अक्सर पर्याप्त संसाधन भी नहीं मिलते हैं। संसाधनों की कमी संभवतः इस मामले में सबसे महत्वपूर्ण कारक है।
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