प्रयागराज, जो ना सिर्फ अपनें धर्म और आस्था के लिए प्रसिद्ध है बल्कि साहित्य और सांस्कृतिक योगदान भी बहुत है। प्रयागराज शहर को जहां एक तरफ ‘प्रधानमंत्रियों की भूमि’ कहा जाता है वही इसे ‘उत्तर प्रदेश की साहित्यिक राजधानी’ भी कहा जाता है। जहां एक ओर पंडित जवाहर लाल नेहरू, वीपी सिंह, चंद्रशेखर, जैसे लोगों ने प्रधानमंत्री पड़ को सुशोभित किया। दूसरी ओर हिन्दी साहित्य में योगदान से मुंशी प्रेमचंद्र, महादेवी वर्मा, बालकृष्ण भट्ट, मदन मोहन मालवीय जैसे लोगों ने गौरान्वित किया है। आज हम इस लेख के अंतरगत प्रयागराज के साहित्यिक और सांस्कृतिक योगदान के बारें में चर्चा करेंगे।
हिन्दी साहित्य में योगदान –
प्रयागराज की धरती पर ऐसे व्यक्तित्व ने जन्म लिया जिन्होंने अपनी प्रतिभा से हिन्दी में एक अलग छवि रखते है। ये कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा इनकी मौजूदगी हिन्दी मे चार-चाँद लगती है। इन्होंने ना सिर्फ हिन्दी को सँवारा बल्कि वैश्विक स्तर पर पहचान भी दिलाया।
वैसे हिन्दी में खड़ी बोली के प्रथम साहित्यकार मानें जाने वाले मुंशी सदासुख लाल का भी नाम इस शहर से जुड़ा है। वैसे तो इनका जन्म दिल्ली मे हुआ था परंतु 1811 ई. मे प्रयागराज आकार बस गए। इन्होंने श्रीमद् भागवत एवं विष्णु-पुराण का हिन्दी मे अनुवाद कर दिया था ताकि कोई भी इसे आसानी से पढ़ सके। इस प्रकार हिन्दी साहित्य से समाज को सुधारने की पहल का श्रेय इन्ही को जाता है।
हिन्दी साहित्य में सूर्यकांत त्रिपाठी का योगदान –

छायावाद के प्रमुख कवियों मे शुमार सूर्यकांत त्रिपाठी जी का जन्म बंगाल के मेदिनीपुर में सन् 1899 ई. हुआ था। कलकत्ता और लखनऊ मे संपादक का कार्य करने के उपरांत प्रयागराज मे आ बसे। निराला जी कवि, उपन्यासकार के साथ निबंधकार भी थे। उनके निबंध जहां सामाजिक एवं राजनीतिक मुद्दों को वहीं उपन्यास ग्रामीण जीवन की छवि को इंगित करते है। इनको छायावाद के चार स्तंभों मे से एक माना जाता है साथ ही इन्हे महाप्राण की भी उपाधि भी दी गई है।
इनका पहला काव्य 1923 ई. अनामिका नाम से प्रकाशित हुआ था। परिमल गितिका एवं स्मृति सरोज इनके कुछ प्रसिद्ध काव्य है। इनके उपन्यासों मे अप्सरा, चमेली, निरुपमा आदि फेमस है। इनके निबंध का सम्पादन बांग्ला भाषा का उच्चारण 1920 ई. मे सरस्वती नाम से प्रयागराज मे हुआ था।
इनका देहांत 1961 ई. मे हो गया था।
हरिवंश राय बच्चन के द्वारा दिया गया हिन्दी साहित्य में योगदान –

1907 ई. में बाबुपट्टी प्रयागराज में हरिवंशराय बच्चन का जन्म हुआ। इनको इनकी मधुशाला रचना के लिए प्रसिद्धि मिली। 1968 मे इन्हे साहित्य अकादमी अवॉर्ड दिया गया तो वहीं 1976 ई. मे इन्हे पद्मभूषण से सम्मानित किया गया।
इनकी प्रमुख रचनाओं में मधुशाला, नीड़ का निरमाण फिर-फिर, क्या भूलूँ क्या याद करूँ, दो चट्टानें, मधुकलश निशा निमंत्रण आदि है।
इनकी रचना अग्निपथ फिल्म भी प्रयोग किया गया है। 2003 ई. में इन्होंने अंतिम साँस ली।
महादेवी वर्मा का हिन्दी साहित्य में योगदान –

महादेवी वर्मा का जन्म मे सन् 1907 ई. में फर्रुखाबाद मे हुआ था। इनको आधुनिक युग की मीरा भी कहा जाता है। इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत विषय में एम.ए. किया। इनकी मदद से ही सुभद्रा कुमारी चौहान की अध्यक्षता में पहली बार महिला कवि का आयोजन प्रयाग महिला विद्यापीठ मे हुई थी। इन्होंने नारीवाद का शुरुआत की थी। इन्होंने नारियों से प्रेरित चाँद पत्रिका सम्पादन 1923 ई. मे किया था।
इनकी प्रमुख रचनाओं मे रश्मि, नीहार, सांध्यगीत, अग्निरेखा, नीरजा आदि है। गद्य मे बात की जाय तो अतीत के चलचित्र, मेरा परिवार, स्मृती की रेखाएं, हिमालय आदि है।
महादेवी वर्मा का देहांत 1987 में हो गया।
मुंशी प्रेमचंद जी का हिन्दी साहित्य में योगदान –

मुंशी प्रेमचंद का जन्म लमही नामक गाँव में सन् 1880 ई. में बनारस मे हुआ था। इनकी प्राथमिक शिक्षा उर्दू मे हुई थी। ये अपने माता-पिता की चौथी संतान थे। इनकी माँ के निधन हो जाने के बाद सौतेली माँ से वो स्नेह नहीं मिला। जिससे इनकी रुचि पुस्तकों की ओर हुई। इनकी पहली कहानी ‘सौंत’ सरस्वती पत्रिका मे संपादित हुई थी। वही आखिरी कहानी ‘कफन’ थी। इनकी कहानियों मे समाज के निम्न वर्ग एवं कुरीतियों के प्रति का चित्रण किया गया है। इन्हे हिन्दी कहानी का पितामह कहा जाता है।
वैसे मुंशी प्रेमचंद कानपुर और लखनऊ भी रहे थे। उनका कहना था की बनारस और प्रयागराज साहित्य के लिए उर्वर है। किसी व्यक्ति को साहिय के लिए या तो प्रयागराज रहना चाहिए या जीवन का बड़ा हिस्सा प्रयागराज मे बिताना चाहिए।
इनके प्रमुख उपन्यासों में गबन, कर्मभूमि, निर्मला, सेवासदन, प्रतिज्ञा, कायाकल्प, गोदान आदि हैं। इनकी लघु कथा के रूप में काकी, गुल्ली-डंडा, परीक्षा, बूढ़ी काकी, शतरंज के खिलाड़ी, पंच परमेश्वर, बेटी का धन, सौंत आदि है।
यद्यपि की वह अंतिम सांस प्रयागराज मे लेना चाहते थे परंतु 1936 ई. मे बनारस मे देहावसान हो गया।
मैथिलीशरण गुप्त जी का योगदान –

मैथिलीशरण गुप्त जी का जन्म चिरगांव झांसी में सन् 1886 ई. को हुआ था। इनको खड़ी बोली का अग्रदूत कहा जाता है। जिस समय ये खड़ी बोली के पक्षधर थे उस समय कवि ब्रज भाषा में रचनाएं करते थे। इनको पद्म भूषण से 1954 में नवाजा गया। इनको महात्मा गांधी ने राष्ट्रकवि की उपाधि दिया था।
इनकी पहली रचना रंग में भंग इंडियन प्रेस द्वारा प्रकाशित हुई थी। इनकी रचना भारत-भारती ने इन्हे लोकप्रिय बना दिया। इस रचना मे इन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के बारें मे लिखा था। इनकी प्रमुख रचनाएं साकेत, यशोधरा, जयद्रथ वध, पंचवटी, किसान, प्लासी का युद्ध, निर्झर आदि है।
स्वतंत्रता पश्चात इन्हे राज्यसभा का मेम्बर बनाया गया। मृत्यु पर्यंत यह उसके सदस्य बने रहे। इनका देहांत 1964 ई. को हो गया।
धर्मवीर भारती जी का हिन्दी साहित्य में योगदान –

इनका जन्म अतरसूइया प्रयागराज मे सन् 1926 ई. में हुआ था। इनकी शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हुई है। ‘संगम पत्रिका’ का सह-सम्पादन इन्होंने किया था। हिन्दुस्तानी अकादेमी में अध्यापक का कार्य भी किया था। इनके द्वारा लिखा गया नॉवेल ‘गुनाहों का देवता’ आज युवाओं को काफी पसंद आता है।
धर्मवीर भारती को पद्मश्री से भारत सरकार के द्वारा 1972 ई. में हुआ था। सन् 1998 ई. इन्हे संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार भी मिल हुआ है।
इनकी प्रमुख कहानी संग्रह में मुर्दों का गाँव, स्वर्ग और पृथ्वी, चाँद और टूटे हुए लोग है। काव्य रचनाओं में ठंडा लोहा, सात गीत वर्ष, कानुप्रिया आदि। तथा सूरज का सातवाँ घोडा, अंधा युग, प्रारंभ और समापन आदि है। इनकी प्रमुख कहानी संग्रह में मुर्दों का गाँव, स्वर्ग और पृथ्वी, चाँद और टूटे हुए लोग है। काव्य रचनाओं में ठंडा लोहा, सात गीत वर्ष, कानुप्रिया आदि। तथा सूरज का सातवाँ घोडा, अंधा युग, प्रारंभ और समापन आदि है।
इनका देहांत सन् 1997 ई. मे हो गया था।
रामकुमार वर्मा जी का योगदान –

इनका जन्म सन् 15 सितंबर 1905 ई. को मध्य प्रदेश में हुआ था। इनकी पहचान एक साहित्यकार, व्यंग्यकार एवं हास्य कवि के रूप मे है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से इन्होंने हिन्दी विषय में एम.ए. किया है। इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग मे अध्यापन का कार्य करने के साथ विभाग के अध्यक्ष का कार्यभार भी संभाला था।
इनकी प्रमुख रचनाओं में हठी-हमीर, चितौड़ की चिंता, अभिशाप, निशीथ, कबीर पदावली, कौमुदी महोत्सव, चित्ररेखा, रेशमी टाई अंजली आदि है।
उनके ऐतिहासिक नाटकों में एकलव्य, उत्तरायण आदि है।
इन्हे 1965 ई. मे इन्हे पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया। इनके उपन्यास ‘चित्ररेखा’ पर देव पुरस्कार एवं एकांकी संग्रह पर अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन पुरस्कार भी मिल।
इनकी मृत्यु सन् 1990 ई. मे हो गई थी।
सुमित्रानंदन पंत जी का हिन्दी साहित्य में योगदान –

छायावाद के प्रमुख कवियों में से एक सुमित्रा नंदन पंत जी का जन्म अल्मोड़ा जिले के कौसानी मे हुआ था। इनका जन्म 20 मई 1900 ई. मे हुआ था। 1920 ई. में इन्होंने प्रयागराज के म्योर सेंट्रल कॉलेज मे प्रवेश लिया। 1960 ई. में पंत जी को ‘कला और बूढ़ा चाँद’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया। 1968 ई. में इन्हे साहित्य का सर्वोच्च पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार इनकी साहित्य ‘चिदम्बरा’ के लिए प्राप्त हुआ। 1961 ई. पद्म भूषण सम्मान से सरकार द्वारा सम्मानित किया गया।
इनकी प्रमुख कविताएं लोकायतन, पल्लव और युगांत है।
28 दिसम्बर 1977 ई. में इनका निधन हो गया था।
हिन्दी साहित्य में महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का योगदान –

महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का जन्म उत्तर प्रदेश के रायबरेली में 15 मई 1864 ई. में दौलतपुर गाँव में हुआ था। इनका नाम गलती से स्कूल में लिख दिया गया था। जो बाद में हिन्दी साहित्य में इनकी पहचान बन गया। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में हुई। बाद की शिक्षा में इंग्लिश पढ़ाई के लिए शहर भेजा गया जहां संस्कृत ना होने के कारण फारसी की शिक्षा ग्रहण की। इन्हे महान साहित्यकार के साथ हिन्दीयुग के लीडर के रूप में भी जाना जाता है। प्रारंभ में अपनी जीविका निर्वहन करने के लिए उन्होंने रेल्वे में नौकरी कर ली। और यहीं पर उन्होंने लेखक एवं साहित्यकार के रूप में काफी प्रसिद्धि हासिल की।
1903 में ये सरस्वती पत्रिका से जुड़े उसके बाद सम्पादन का कार्य भी किया। इन्होंने काव्य में ब्रज भाषा की जगह हिन्दी खड़ी बोली का प्रयोग किया। इनके नाम पर ही एक युग द्विवेदी युग का नाम रखा गया। इन्होंने हिन्दी बोली का काफी आगे बढ़ाया। ‘नागरी प्रचारिणी सभा’ ने इनको आचार्य की उपाधि दी। जबकि ‘हिन्दी साहित्य सम्मेलन’ नें इन्हे वाचस्पति की उपाधि से विभूषित किया।
इनके काव्य संग्रह – काव्य मंजूषा, कविता कलाप और सुमन। इनकी आलोचना रसज्ञ रंजन, नाट्यशास्त्र, कालिदास एवं उनकी कविता है। इनकी रचनाएं कुमार संभवम, किरातार्जुनियं, स्वाधीनता आदि है।
इनकी मृत्यु सन् 1934 ई. में हो गया था।
सुभद्रा कुमारी चौहान –

सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म प्रयागराज के निहालपुर गाँव मे 16 अगस्त 1904 ई. मे हुआ था। इनकी शिक्षा क्रास्थवेट गर्ल्स कॉलेज प्रयागराज मे हुआ। ये महादेवी वर्मा की सीनियर हुआ करती थी। 1919 ई. में इनकी शादी खांडवा के ठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान से शादी कर ली। जिसके उपरांत ये जबलपुर रहने लगी।
इनकी सबसे लोकप्रिय रचना ‘झांसी की रानी’ है। इनकी प्रमुख कविता संग्रह त्रिधरा, मुकुल, ये कदंब का पेड़ है। हिंगवाला इनका लघु कथा है। साथ ही सीधे-साधे चित्र, मेरा नया बचपन, बिखरे मोती आदि भी रचनाएं संकलन है।
इनकी मृत्यु सिवनी मध्य प्रदेश सन् 1948 ई. मे हो गया था।
निष्कर्ष –
इस प्रकार हम देखते है की हिन्दी साहित्य में योगदान देने वाले कवियों एवं रचनाकारों का अमूल्य योगदान रहा है। यद्यपि की कुछ कवि की यह जन्मभूमि ना रही फिर भी कर्मभूमि बनाकर ख्याति हासिल की है। प्रयागराज की धरती धार्मिक महत्वता के साथ साहित्य में भी अपनी अमिट छाप छोड़ी है।
दूसरी पोस्ट में देखिए वीमेन्स प्रीमियर लीग के बारे में –