जब लोक-सुरों की आवाज शहरी सभागृहों में भी सुनाई देती है, तो यह हमारी संस्कृति जीवित होने का प्रमाण देती है।ऐसे ही एक तीन दिवसीय लोक संस्कृति उत्सव का समापन आज हुआ। और इस समापन को खास बनाया प्रसिद्ध कवि नीलोत्पल मृणाल की कविता-गीत प्रस्तुतियों ने, जिसने श्रोताओं का दिल जीत लिया।
लोक संस्कृति उत्सव आयोजन की मूल जानकारी
यह उत्सव आयोजन आर्ट एंड कल्चर सोसाइटी की ओर से आयोजित किया गया था। यह कार्यक्रम तीन दिनों का था, जिसमें लोक संगीत, नृत्य, लोकगीत और पारंपरिक परिधान प्रतियोगिता शामिल थे। प्रयाग संगीत समिति के सभागार में समापन दिन कवि सम्मेलन हुआ।
नीलोत्पल मृणाल ने कार्यक्रम में श्रोता-समूह को अपनी काव्य प्रस्तुति दी। “कोई बलिया, देवरिया कोई आजमगढ़ से आया है…” और “चाहे जन्नत भी मिल जाए, दाल-भात चोखा ना छूटे” की लोकप्रिय पंक्तियाँ गाईं, तो श्रोता भावुक होकर ताली बजाते हुए उठ खड़े हुए। रुचि चतुर्वेदी नें “प्रेम से प्रेम की हर बात यूं निभानी है, कृष्ण की प्रीति प्रीत सप्त स्वर में गानी है” सुनाया। जबकि रितेश रजवाड़ा आदि ने हास्य और सामाजिक पंक्तियों ने भावविभोर कर दिया।
कथा-कहानियाँ, लोक गीत-नृत्य, राष्ट्रीय लोक परंपरा पर संगोष्ठी, लोक परिधानों की प्रतियोगिता आदि इसके पहले सत्रों में प्रस्तुत किए गए।
सारांश
तीन दिवसीय लोक संस्कृति उत्सव का अंत न केवल एक कार्यक्रम का समापन था, बल्कि एक नई शुरुआत भी था। नीलोत्पल मृणाल की कविता-गीत प्रस्तुति ने श्रोताओं को मोह लिया और लोक कला की महत्व को फिर से याद दिलाया।
कानपुर-प्रयागराज हाईवे हादसा: स्कॉर्पियो डूबने से चार लोगों की मौत, पांच घायल। प्रयागराज में दिया गया टेक्नॉलजी पार्क और स्टेडियम बनाने का प्रस्ताव भेजा गया।

