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सोमवार, नवम्बर 10, 2025

प्रयागराज की सीता की रसोई भीटा गाँव: एक अद्भुत पौराणिक स्थल की यात्रा

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परिचय

अगर आप प्रयागराज या आस-पास के क्षेत्र के रहने वाले हैं, तो “सीता की रसोई” नाम आपने ज़रूर सुना होगा। सीता की रसोई भीटा गाँव के पास यह जगह सिर्फ धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि भावनात्मक जुड़ाव के लिए भी खास है। इस जगह को देख के लगता है मानो इतिहास और आस्था की बातें जीवंत हो गई हों।

सीता की रसोई का पौराणिक महत्व

रामायण की कहानी हर कोई जानता है। कहा जाता है कि भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता 14 वर्ष के वनवास में निकलने पर एक बार प्रयागराज के निकट यमुना किनारे इस स्थान पर रुके। माता सीता ने अपने हाथों से भोजन यहीं भीटा घाट पर बनाया था, जिसकी याद में आज भी यह स्थान “सीता की रसोई” कहलाता है। 

सीता की रसोई प्रयागराज
भीटा गाँव सीता की रसोई
सीता माता भोजन स्थल
प्रयागराज के दर्शनीय स्थल
 पहाड़ी में 2000 साल पुराने बौद्ध चित्र सीता की रसोई प्रयागराज
भीटा गाँव सीता की रसोई
सीता माता भोजन स्थल
प्रयागराज के दर्शनीय स्थल

कैसा है यह स्थान?

सीता की रसोई एक भावनात्मक रूप से महत्वपूर्ण स्थान है, हालांकि यह बहुत ही साधारण है। वहाँ कोई महत्वपूर्ण स्मारक नहीं है। स्थानीय लोगों ने एक छोटा-सा  चट्टान पर चबूतरा  है। यह स्थान पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा राजकीय धरोहर घोषित है और संरक्षित है। अगर आप यहाँ आते हैं, तो आप एक शांत और यात्रानुकूल स्थान मिलेगा। यहाँ लोग माता सीता के पवित्र चरण चिन्हों को पूजते हैं। यमुना का किनारा इस स्थान को और भी सुंदर बनाता हैं। 

कैसे पहुँचें सीता की रसोई भीटा ?

प्रयागराज शहर से सीता की रसोई लगभग 25-30 किलोमीटर दूर है। प्रयागराज जंक्शन से घूरपुर के लिए बस या टैक्सी लें प्रयागराज-रीवा रोड से होते हुए घूरपुर और फिर भीटा पहुँच जाएंगे। घूरपुर से होते हुए सुजावन देव मंदिर का प्रसिद्ध मार्ग है। यहाँ आसानी से पहुँचने के लिए आप स्थानीय लोगों से या Google Map पर पूछ सकते हैं। 

पहाड़ी के ऊपर माँ सीता की मूर्ति और चरण 
सीता की रसोई प्रयागराज
भीटा गाँव सीता की रसोई
सीता माता भोजन स्थल
प्रयागराज के दर्शनीय स्थल
माँ सीता के चरण की प्रतीक 
सीता की रसोई भीटा

यात्रियों के लिए सुझाव

यहाँ घूमने के लिए सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च या रामनवमी/सीता नवमी का समय है। यहाँ की यात्रा के लिए आप पूजा सामग्री के अलावा अपने प्रयोग के लिए कैमरा वगैरा ले जा सकते हैं। आस-पास घूमने के लिए सुजावन देव मंदिर, यमुना का किनारा और प्रयागराज के अन्य तीर्थ मिल जाएंगे। 

निष्कर्ष

भीटा गाँव में स्थित “सीता की रसोई” सिर्फ एक जगह नहीं, बल्कि आस्था, संस्कृति और पौराणिक कहानी की ज़िंदा मिसाल है। “सीता की रसोई” भीटा गाँव में कोई भव्य तीर्थ नहीं है, लेकिन उसकी आत्मा किसी भी धार्मिक स्थान से कम नहीं है। यह स्थान महिलाओं की श्रद्धा एवं लोककथाओं में जीवित है और प्रयागराज की सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा है। अगर आप कभी प्रयागराज आएँ, तो यहाँ आकर एक बार अनुभव को ज़रूर महसूस करें। 

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