धार्मिक और सांस्कृतिक आस्था का प्रतीक महाकुंभ एक बार फिर शुरू होने वाला है। हिन्दू मान्यता के अनुसार यहाँ स्नान करने के कुछ विशेष दिन माने जाते है जिसमे स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। वैसे बात करें कुम्भ मेला की तो यह हर वर्ष माघ के महीने मे लगता है । पर इस बार का कुम्भ इस मामले मे भी विशेष है की यह महाकुंभ है अर्थात 12 वर्षों के उपरांत लग रहा है। प्रत्येक वर्ष के बाद कुम्भ 6 वर्षों के बाद अर्धकुंभ और 12 वर्षों के उपरांत महाकुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।
इस बार का महाकुंभ 13 जनवरी से शुरु होकर 26 फरवरी तक चलेगा।

कुम्भ मेला क्यों मनाया जाता है?
धार्मिक मान्यता के अनुसार अमृत की कुछ बुँदे यहाँ गिरने के कारण कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है। इसके बारे मे मान्यता यह है की ऋषि दुर्वाषा के श्राप के कारण देवता कमजोर पड़ गयो उसी समय दैत्यों ने इन पर आक्रमण करके विजय प्राप्ति कर ली। तदुपरांत देवता सहायता के लिए भगवान विष्णु के पास गये। सारी बातें सुनने के बाद विष्णु भगवान ने दैत्यों के साथ मिलकर समुन्द्र मंथन करके अमृत निकालने की सलाह दी। जैसे ही समुन्द्र मंथन से अमृत निकला इन्द्र पुत्र जयंत इसे लेकर आकाश मे उड़ गया जिसका पीछा दैत्यों ने किया। लगातार 12 दिनों तक संघर्ष चलता रहा। इसी बीच अमृत की कुछ बुँदे हरिद्वार,नासिक,उज्जैन और प्रयागराज मे गिर गयी तभी से कुम्भ मेला का आयोजन किया जाता है।
कुम्भ मेला कहाँ-कहाँ लगता है –
कुम्भ मेला कुल मिलकर चार जगहों पर लगता है। उज्जैन मध्य प्रदेश क्षिप्रा नदी के किनारे, नासिक गोदावरी नदी के किनारे, हरिद्वार गंगा नदी के किनारे जबकि प्रयागराज संगम के किनारे लगता है।
क्यों कहा जाता है इसे शाही स्नान –
ऐसी मान्यता है की प्राचीन समय के राजा-महाराजा साधु-संतों के साथ भारी जुलूस के साथयहाँ स्नान के लिए निकलते थे। यही परंपरा ने शाही स्नान को जन्म दिया।
दूसरी मानता यह है की कुम्भ मेले का आयोजन सूर्य एवं ब्रहस्पति ग्रहों को ध्यान मे रख कर किया जाता है। जिससे इस “राजसी स्नान” कहा जाता है। इससे आध्यात्मिक शुद्धि एवं मोक्ष की प्राप्ति का साधन माना जाता है।
इसमे नागा साधुओ की धार्मिक निष्ठा के कारण पहले स्नान का अवसर दिया जाता है जिसमे वो हाथी, घोड़े और रथ पर सवार होकर भव्य तरीके से स्नान करने जाते है।
कुम्भ मेला मे स्नान के शुभ मुहूर्त –
वैसे तो लोग गंगा स्नान को ही काफी पावित मानते है परंतु इस बार कुम्भ मे ऐसे संयोग बन रहे जिस विशेष समय ले स्नान का विशेष महत्व है। आइए जानते है इस विशेष समय को कब ये आएगा –
दिनांक | दिन | शाही/ स्नान तिथि | समय |
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13 जनवरी | सोमवार | पौष पूर्णिमा स्नान | सुबह 5:27 – 6:21 बजे तक |
14 जनवरी | मंगलवार | मकर संक्राति, शाही स्नान | सुबह 5:27 – 6:21 बजे तक |
29 जनवरी | बुधवार | मौनी अमावस्या, शाही स्नान | सुबह 5:25 – 6:18 बजे तक |
3 फरवरी | सोमवार | बसंत पंचमी , शाही स्नान | सुबह 5:23 – 6:16 बजे तक |
12 फरवरी | बुधवार | माघी पूर्णिम, स्नान | सुबह 5:19 – 6:10 बजे तक |
26 फरवरी | बुधवार | महाशिवरात्रि, स्नान | सुबह 5:09 – 6:29 बजे तक |
कुम्भ मेला मे शाही स्नान का महत्व –
ज्योतिषी आचार्यों के अनुसार जो भी कुम्भ मेले मे शाही स्नान करता है उसे जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। इनके अनुसार शाही स्नान की तिथि कुम्भ मेले के ही दौरान आती है। जिसमे स्नान से आपके कई जन्मों के पाप कट जाते है। ऐसी मान्यता है की सर्वप्रथम इसमे नागा साधु एक राजशी ठाट-बाट के साथ स्नान करते है उसके उपरांत साधु-संत और फिर आमजन भी स्नान करते है।
निष्कर्ष –
इस प्रकार प्रयागराज कुम्भ मेले का आयोजन एक धार्मिक एवं सांस्कृतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है। जहां एक ओर धार्मिक रूप से इसका महत्व है वही आर्थिक रूप से भी काफी ज्यादा ध्यान आकर्षित करता है। यह हिन्दू आस्था का एक जीत जगत उदाहरण है जिसमे ना सिर्फ देश अपितु विदेश से भी लोग इसका आयोजन देखने आते है। तो फिर देर किस बात की आप भी आइए और अपने देश की रीच कल्चर और ट्रडिशन का लुत्फ उठाइए।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न(FAQ’S)-
1. महाकुंभ 2025 का महत्व क्या है?
इस बार का कुम्भ इस कारण से भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह 12 वर्ष बाद आयोजित हो रहा है। तथा इसमे ग्रहों मे सूर्य एवं ब्रहस्पति की स्थिति देखी जाती है। तथा पूर्ण महाकुंभ भी कहा जा रहा है जिसे 144 वर्ष पश्चात हो रहा है।
2. महाकुंभ 2025 में अनुमानित श्रद्धालुओं की संख्या कितनी है?
महाकुंभ मे इस बार लगभग 40 करोड़ श्रद्धालुओं की संख्या अनुमानित है।
3. महाकुंभ 2025 के दौरान स्वच्छता के लिए क्या उपाय किए गए हैं?
स्वच्छता को ध्यान मे रखते हुए इस बार लगभग 10000 सफाई कर्मचारियों की तथा 1,50,000 शौचालयों की व्यवस्था की गई है।